कामवासना
यह नर हार गया , हैं तु बड़ी कठोर
फूलो के मधुर मकरंद तु नहीं देगी ।
किसी औरो के लिए तु ,
उन फूलों को छूने नहीं देगी ।
हार मान गए हम , तू है सुर – सती,
स्वर्ग का आनंद नहीं लेने देगी ।
दो छन के लिए मुझे , अपनी
कामवासना उतारने नहीं देगी ।
है जहाँ जो कही भी सुन्दर नारी,
करती है खुद अपनी पहरेदारी ।
हैं काम श्रापित नर खड़ा ,
कर रही कामो-क्रिया की तैयारी ।
मैं मान गयी ,है तू हार गया ,
कामवासना संभाले हैं ।
मैं जान गयी , है तुम एक
नीच शक्ति से श्रापित तुम हो ।
एक बार तुम मुझे ,
दिल जीत कर तो देखो ,
फिर मैं ईन्द्र लोकों की तरह , तुम पर
यौवन की धजिया उड़ाएंगे ।
तुम शांत रहो , संभाल लो ,
अपने कामो श्रापित त्रास को ।
जाओ, मुग्ध होकर तुम ,
दिल जीतने की तैयारी में ।