*कामवाली बाई (लॉकडाउन-कहानी)*
कामवाली बाई (कहानी)
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” देखो मधु ! यह जो कामवाली आती हैं, इनसे दूर रहा करो । पता नहीं कब बीमारी लेकर आ जाएं और हमें और तुम्हें देकर चली जाएँ। इन लोगों का कुछ पता नहीं चलता । ”
“मैं तो दूर ही रहती हूं लेकिन फिर भी काम के सिलसिले में थोड़ा पास जाना ही पड़ता है । ”
“तो मास्क लगाओ लेकिन दूर ही रहो। पता है ,अस्पताल का कितना खर्चा बैठता है ? लाखों रुपए का बिल मामूली बात है ।”
” हां ! यह बात तो है । ”
” बात पैसों की नहीं है । बात यह है कि कहीं हमारी जिंदगी पर यह लापरवाही भारी न पड़ जाए । इन लोगों को तो कोई फर्क पड़ता नहीं है । सब में घुसे रहते हैं और बीमारी फैलाते रहते हैं ।”
मधु और उसके पति की यह बातें चल ही रही थीं कि कामवाली बाई ने घर के दरवाजे की घंटी बजाई और अंदर आ गईं। बाई के मुंह पर हमेशा की तरह मास्क लगा हुआ था । मधु ने अपने पति की तरफ एक क्षण के लिए देखा और बहुत दूर हट गई। कामवाली बाई ने अपना रोजमर्रा का काम शुरू कर दिया । झाड़ू लगाई और फिर उसके बाद पोछा लगाने लगीं। पोछा लगाते – लगाते ही कामवाली बाई ने कहा – ” मालकिन ! अब मैं कल से चौदह दिन नहीं आऊंगी।”
” क्यों ? ऐसी क्या मुसीबत आ गई ? अगर नहीं आओगी तो हम पैसे नहीं देंगे।”
” आप पैसे भले ही मत दो लेकिन आपके मोहल्ले में बल्लियाँ लग चुकी हैं। छह मरीज मोहल्ले के अंदर अपना इलाज आइसोलेशन में कर रहे हैं । तीन मरीज अस्पताल में भर्ती हैं । हवा में बीमारी फैली हुई है । आखिर मुझे भी तो अपनी सेहत का ख्याल रखना है । ”
” तुम्हें अपनी सेहत का ख्याल रखना है ? कमाल है ! ”
” हां मालकिन ! आज सुबह ही मेरे पति मुझे समझा रहे थे कि तुम अपनी मालकिन से चौदह दिन की छुट्टी लेकर आ जाना । घर पर बैठो । जैसे – तैसे हम रूखी – सूखी खा कर गुजारा कर लेंगे । अगर बीमार पड़ गए तो हमारे पास लाखों रुपए खर्च करके इलाज कराने का विकल्प भी तो नहीं है ! मालकिन ! हम दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं । हम नहीं चाहते कि हम में से कोई एक भी यह दुनिया छोड़कर चला जाए ।”
मधु अपराधी की तरह कामवाली बाई के मन की बातें सुनती रही । उसने पति की तरफ चेहरा उठाकर देखा । पति का चेहरा अपराध – बोध से झुका हुआ था ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर( उत्तर प्रदेश )
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