काबिलियत
काबिलियत ये नहीं कितने कामयाब हो
काबलियत ये नहीं कितने मशहूर हो तुम
काबलियत ये नहीं पद प्रतिष्ठा कितनी हैं
काबलियत हैं कितने झुके हो तुम
कितने के लिए रुकें हो तुम
कितनों का दिल जीत आएं
कितनों के काम तुम आएं
कब कब अपना रास्ता बदला
कितनों के दर्दं को समझा
फल लगा पेड़ सदा झुका रहता
भरा गागर कभी नहीं बजता
ज्ञानी बस मुस्कुराता रहता
अज्ञानी ही साबित करता
काबिल बनो कामयाबी खुद मिल जायेंगी
रास्ते पर चलो मंजिल खुद दिख जायेंगी
इंसान तो बनो इंसानियत आ जायेंगी
दूसरों को उठाओ दुनिया तुम्हें उठायेगीं
दीपाली कालरा