कान्हा
देवकी का पुत्र था नन्द का वो प्यार भी
वासु ने उसको दिया था एक नव संसार भी
गोपियों को देख मोहन फोड़ता है मटकियाँ
माँ यशोदा बाँध उसको दे रही दुत्कार भी
रोज ही माखन चुरा खाता तभी तो चोर है
आ गया है हाथ माँ के तब मिली फटकार भी
हाथ में कान्हा रखे जिस चक्र को भी पास है बैरियों का जो दमन कर दे वहीं तो औजार भी
प्रेम कान्हा से किया है गोपियों ने खूब ही
छोड़ राधा ने जहाँ सारा किया इकरार भी
देश पूरा ही मनाता जन्म दिन भी कान्ह का
प्रीत धागें में पिरो कर फिर मना त्यौहार भी
हो न कोई दीन दुखिया आज सारे ही जहाँ
फिर सजे इस लोक में भी द्वारिका दरवार भी
डॉ मधु त्रिवेदी