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2 Dec 2018 · 1 min read

कान्हा

कान्हा

ढ़ूढ़ता फिरता वृन्दावन
की राहों गलियों में
कान्हा ,
कुंजन के बीच
दिखता नही

शीतल नीर का
कहीं पता नहीं
यमुना गंदी मैली है ।

वीरान उजाड़
सा लगता वृन्दावन
कंकरीट का जंगल बना दिया
वृन्दावन

कामधेनुएँ भूँखी घूमती
शहर शहर गली गली
गौशाला के नाम पर
लूटते पैसा है

ग्वाल बाल सखा अब रहे नही तुम्हारे
चक्रव्यूह रचता नित नये

दुषित दूध का विषपान
कराती फिरतीं हैं शिशुओं को
यशोदा का मन करता क्रंदन रूदन

दुर्योधन चीर हरण करते फिरते है
गलियों चौराहों में
कान्हा को अब फिक्र नहीं

बान्सुरी में मस्त है कान्हा
द्रोपदी की लाज फिक्र नहीं

संतोष श्रीवास्तव

Language: Hindi
359 Views
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