कान्हा संग होली
पूजा की थाली सजी लड्डू गोपाल संग
रोली अक्षत भोग भी है अबीर गुलाल संग।
संग-संग होलिका के बैर को जलाना है
प्यार और स्नेह के रंगों से सजाना है।
कान्हा तूने बिरज में रंग खेले प्रीत के
प्यार बांटा कभी हार और कभी जीत के।
होली में मुरारी तू ही हमारा नायक है
कान्हा कहे रखो प्रेम दुश्मनी तो नाहक है।
गोविंदा तो भाईचारे प्रेम का का प्रणेता है
प्रेम का है पर्व होली यही संदेश देता है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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