***” कान्हा वो कान्हा “***
***कान्हा वो कान्हा ***
कान्हा वो कान्हा तेरे दीदार को येअँखियाँ तरसी है ।
अब तो आके झलक दिखा जा मिलने की तमन्ना में बरसी है।
तुझको देखे बिना करार नही तेरे बिना तो सारी दुनिया बेगानी है
अब तो रहमत कर दे जरा दीवाने पे छोटी सी मेरी ये गुजारिश है।
लगन लगाके कहाँ चले गये हो तेरी सेवा में बैठे हुए दामन थाम लिये है।
सारी दुनिया से बगावत करके खुद को तेरे दीदार में लुटायें बैठे हैं।
कैसे कहूँ तुमसे मिलने साँवरे सब दांव पर लुटा बैठे है।
तेरे नाम का ही सुमिरन करके सारे संसार को भुला बैठे हैं।
कान्हा वो कान्हा तेरे दीदार को अँखियाँ तरसी है।
अब तो आके झलक दिखा जा मिलने की तमन्ना में बरसी है।
स्वरचित मौलिक रचना ??
***$ शशिकला व्यास $***
#* भोपाल मध्यप्रदेश *#