कान्हा वापस आओ
कान्हा अपनी राधा को तुम, इतना नहीं सताओ
देख रही हूं राह तुम्हारी, जल्दी वापस आओ
कान्हा वापस आओ ….
साँस -साँस में बसता नाम तुम्हारा है
जन्म -जन्म का देखो प्यार हमारा है
जब भी तुमसे बंशी की धुन सुनती हूँ
खोकर उसमें अनगिन सपने बुनती हूँ
आओ मेरे पास बैठकर,बंशी मधुर सुनाओ
देख रही हूं राह तुम्हारी, कान्हा वापस आओ
यादों की गंगा में हर पल बहती हूँ
बस तुमसे ही बातें करती रहती हूँ
बिना तुम्हारे राधा सदा अधूरी है
सही नहीं जाती अब मुझसे दूरी है
मैं तुममें खो जाऊँ आओ ,तुम मुझमें खो जाओ
देख रही हूं राह तुम्हारी, कान्हा वापस आओ
गोप -गोपियाँ याद तुम्हें बस करते हैं
सबकी आँखों से आँसू ही झरते हैं
कैसे मात यशोदा को मैं समझाऊँ
दर्द नंद बाबा का कैसे दिखलाऊँ
सबको अपने गले लगाकर, तुम ही अब समझाओ
देख रही हूं राह तुम्हारी, कान्हा वापस आओ
बुझे -बुझे दिन काली -काली रातें हैं
सन्नाटा है मौन हो गई बातें हैं
बिना तुम्हारे सूनी -सूनी हैं गलियाँ
भूल गई हैं खिलना भी अब तो कलियाँ
रूठे सूरज चाँद सितारे , आकर इन्हें मनाओ
देख रही हूं राह तुम्हारी, कान्हा वापस आओ
डॉ अर्चना गुप्ता
08.06.2024