कान्हा के दृष्टि में मधुरिम, मिरा सी अल्हड़ प्रियतम।
प्रेम वृष्टि ये सृष्टि खोजे,
यौवन से परे, बनो योगन।
कान्हा के दृष्टि में मधुरिम,
मिरा सी अल्हड़ प्रियतम।
हो निर्मोही दैहिक द्रोही
मादकता से परे नयन
कानन गुंजित स्वर अनुरंजित
प्रेम शुद्ध रूपम सत्यम
राग भुलाई सुधि बुधि खोई
बन अनुरागी भागी भागी।
पुण्य आत्मना चिंतन करती
प्रेम प्राप्ति के अनुरागी।
प्रेम वृष्टि ये सृष्टि खोजे,
यौवन से परे, बनो योगन।
कान्हा के दृष्टि में मधुरिम,
मिरा सी अल्हड़ प्रियतम।
©® दीपक झा रुद्रा