कान्हा की वंशी
वंशी तुम्हारी प्रिय कान्हा
किस्मत कैसी लायी है ,
बनी काठ की होकर भी यह
मन तुम्हारे भायी है ।
चाहा जैसा साथ तुम्हारा
मुरली ने वो पाया है ,
अधरों पर अधिकार तुम्हारे
कर्मों में लिखवाया है ।
तुम्हारी मधु श्वास ने उसमें
मधुरम स्वर संचार किया ,
मधुरम सरस प्रेम का उसने
मधुर मधुर है गान किया ।
उस प्रेम का अंश मात्र भी
कान्हा मुझको मिल जाए ,
कुछ चाहत न शेष रहेगी
जीवन मेरा तर जाए ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली ।