कानून में हाँफने की सजा( हास्य व्यंग्य)
कानून में हाँफने की सजा( हास्य व्यंग्य)
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मैं हाँफ रहा था और मेरे सामने कुर्सी पर बैठा हुआ सरकारी अधिकारी मुझे देखे जा रहा था । फिर जब मैंने हाँफना बंद किया तो उसने कहा” मालूम है! आप लगातार सरकारी नियमों का उल्लंघन कर रहे थे”
मैंने पूछा “कौन सा सरकारी नियम था?”
वह बोला” आपकी सांसें अव्यवस्थित चल रही थीं। नियमानुसार किसी भी सार्वजनिक स्थान पर सांसों का व्यवस्थित होना बहुत आवश्यक है।”
मैंने कहा “यह भी कोई कानून की चीज है । हमारी सांसे हैं ,हम चाहे जैसे लें ।”
उसने मुंह बिचकाया और कहा “सांसें आपकी हैं, लेकिन व्यवस्थित करने का काम सरकार का है ।यह थोड़ी है कि आपकी सांसें हैं तो आप जब चाहे, जहां चाहे, जैसे चाहे लेते रहें।”
फिर उसने अलमारी खोली और उसमें से एक मोटी सी किताब निकाल कर धूल झाड़ी और सूची से देखकर एक पृष्ठ खोला और पढ़ना शुरू किया -“एतद् द्वारा सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है इस दिनांक के उपरांत अव्यवस्थित रूप से श्वास लेना तथा छोड़ना नियमानुसार अवैध माना जाएगा।”
मैंने बड़े आश्चर्य से कहा” यह कानून कब बन गया ,हमें तो पता ही नहीं चला ! ”
वह बोला” आपको कौन सा कानून है, जिसके बनने का पता चलता है। इस अलमारी को देख रहे हैं “उसने आलमारी की तरफ इशारा करते हुए बताया “इसमें जितनी किताबें हैं और जिन पर धूल चढ़ी हुई है ,वह सब आप से ही संबंधित कानूनों से भरी पड़ी हैं। आपको तो इसमें से किसी के बारे में भी नहीं पता। यह तो हम हैं, जो आपको बताते हैं कि आपने कब, किस जगह, कौन से कानून का उल्लंघन किया है और हम उसके लिए आप को कितनी सजा दिलवा सकते हैं। ”
मैंने कहा “ठीक है ,तो मैं जाता हूं।”
उसने हाथ पकड़ लिया “आप कैसे जा सकते हैं ?अब आए हैं और हमारे सामने आप उपस्थित हैं , तो फिर कुछ थोड़ा सा हमारे भी चाय पानी का इंतजाम करके जाइए ”
मैं बिखर गया। मैंने कहा” यह कौन से उल्टे- सीधे कानून तुमने बना रखे हैं। सांसें लेने पर जिस तरह का अंकुश तुमने लगाया है, हम उसको नहीं मानेंगे।”
वह बोला” कानून किसी के मानने, न मानने से नहीं बनता। आप मत मानिए लेकिन कानून आप को मानना पड़ेगा नहीं मानेंगे तो उसकी सजा है ।आपके ऊपर मुझे भी दस हजार रुपए जुर्माना डालने का अधिकार है।”
मेरी बात समझ में आई ।इतनी भारी, इतनी मोटी मोटी कानून की किताबों से जिन पर धूल भरी हुई है -यह अधिकारी के कार्यालय में शोभा क्यों बढ़ा रही है और यह भी समझ में आ गया यह आदमी इतना मोटा क्यों है। मैंने कहा “निश्चित रूप से तुम दिन भर बहुत खाते होगे ?”
उसने कहा” मेरे खाने से आपका क्या अभिप्राय है ।अगर आपने किसी ऐसे वैसे अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है तो मैं आप को जेल भिजवा दूंगा ”
हमने चतुराई से काम लिया और कहा खाने से हमारा अभिप्राय केवल दाल रोटी चावल इत्यादि से ही है । आप वही ज्यादा खाते होंगे ”
वह बोला” आप का स्पष्टीकरण ठीक तो है ,लेकिन मुझे भी मालूम है कि आप क्या कहना चाहते हैं। खैर जब खाने की बात है ही, तो आप एक हजार रुपए मुझे खिला दीजिए मैं मामला रफा-दफा कर दूंगा।”
हमने ले- देकर मामला निपटाया और जब घर वापस आए, तो बुरी तरह हाँफ रहे थे । श्रीमती जी बोलीं ” हाँफ क्यों रहे हो, कहीं कोई नुकसान न हो जाए”
हमने कहा “नुकसान तो सरकारी दफ्तर में सरकारी अधिकारी के सामने जिसके पास एक किताब है और उस किताब पर धूल अटी पड़ी है -केवल उसके सामने हाँफने से नुकसान होता है ।वरना इस देश में कौन कितना हाँफ रहा है , क्या फर्क पड़ता है?”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451