कानून में फांसी।
हमारे भारतीय संविधान में फांसी की सजा जघन्य अपराधियों को दी जाती है। फांसी की सजा से क्या तात्पर्य हो सकता है। क्या अपराधों में कमी आयेगी।या जनता में भय पैदा करेगा। किसी भी अपराधी को फांसी देना ! क्या यह अपराध नहीं है! अगर किसी कारण वश कोई भी व्यक्ति अपराध करता है।तब उसे मौत की सजा सुनाई जाती है।यह तो पहले से थी गई सजा है। मौत तो ईश्वर ने पहले से तय कर दी है। फिर कानून मौत की सजा क्यों सुनाता है।जो कि सजा का रूप नही है। फिर हम कौन होते हैं। किसी का जीवन छीने। आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।उसे अपने किये गये कर्मों पर पश्चाताप करना भी सजा हो सकती है।और जीवन भर यह सन्देश दे सकेगा कि कोई यह अपराध नहीं करना मौत की सजा क्या सन्देश दे सकतीं हैं।अगर मानव धर्म के एक पहलू पर नजर डाली जाए तो, मौत की सजा नही दी जा सकती है।यह एक अमानवीय व्यवहार है।मानव धर्म के लिए एक दूसरा पहलू खड़ा करता है।कि सजा देने वाले जज साहब के सामने किसी अपराधी को फांसी पर लटकाया जाये ।तब शायद दूसरी बार यह सजा नही देयगा।