*कानाफूसी (लघुकथा)*
कानाफूसी (लघुकथा)
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कालोनी वालों में कानाफूसी शुरू हो गई। एक व्यक्ति साफ-सुथरे कपड़े पहनकर, नई झाड़ू हाथ में लेकर सड़क पर कूड़ा बुहार रहा था। देखते ही देखते कालोनी के आठ-दस लोग हाथों में झाडू लेकर उस व्यक्ति के पास आकर झाड़ू लगाने लगे। दो-तीन फोटोग्राफर भी आ गए। सबने झाड़ू लगाने की अदा में फोटो खिंचाए। वह व्यक्ति थोड़ा परेशान हुआ। बोला “आप मुझे झाड़ू क्यों लगाने नहीं दे रहे ? फोटो खिंचाना है, तो कहीं और जाइए। झाड़ू लगाना है, तो जरा हट के लगाइए।”
वे सब भौंचक्के होकर बोले “तो क्या तुम असलियत में झाड़ू लगाने आए हो? यानि तुम वो नहीं हो ?”
” मैं क्या नहीं हूँ ?”- कृपया समझाकर बतलाइए ।” व्यक्ति बोला।
“सॉरी सॉरी! गलती हो गई। हम गलत समय आ गए।” – – कहते हुए भीड़ छॅंट गई। सब चले गए। सड़क पर वह अकेला झाडू लगाने वाला बचा था।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
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