*कानहा की लीला *
कानहा की मुरली
तान है सुरिली
कर दे नशिली।
कानहा तेरी याद
कर दे आबाद
है ऐसी नाद ।
कानहा छेड़े पनघट
बुलाए यमुना तट
खोले घूँघट ।
कानहा मन के मीत
बढ़ाये हैं प्रीत
कैसी ये रीत ।
कानहा चले गोकुल नगरी
तोड़े गोपीयन की गगरी
मैं तो लाज से मरी।
कानहा चुराये घर-घर माखन
खाये मिल सब सखियन
ताना देत गवालन।
कानहा ने धारण किया गोवर्धन
किया प्रकृति का संरक्षण
हुआ इंद्र का मानमर्दन
कानहा की प्रिया राधा
हर ले सबकी बाधा
रहे न कोई आधा।
कानहा है छलिया
मारे है कालिया
गूँजे गलियाँ।
कानह रचायो रास
करे सब महारास
यही है खास।
कानहा ने दिया गीता-ज्ञान
है यह जीवन का वरदान
हुआ दूर सारा अज्ञान ।
कानहा ने दिया कर्म -फल
किया जीवन सफल
है यही प्रतिफल।