कातिल
लहद में भी नहीं मिलता सुकूं अब तो मिरे दिल को।
चला आया मैं यूँ ही छोड़ के तन्हा जो महफिल को।
शिकायत भी करें तो अब करे किससे बता यारों,
लिया पहचान जब अपनों में अपने ही जो कातिल को।
लहद में भी नहीं मिलता सुकूं अब तो मिरे दिल को।
चला आया मैं यूँ ही छोड़ के तन्हा जो महफिल को।
शिकायत भी करें तो अब करे किससे बता यारों,
लिया पहचान जब अपनों में अपने ही जो कातिल को।