कातिक पूनम की चाँदनी…
कातिक पूनम की चाँदनी…
कातिक पूनम की चाँदनी।
छिटकी मदिर उन्मादिनी।
ढुलके कलश सुधारस भीने,
हुई रात नशीली कासनी।
जुन्हाई -न्हाई -गुराई निशा,
कोमल कमनीया कामिनी।
देख रूप मधुर मुस्काए,
हो आत्मविमुग्धा यामिनी।
पसरी अलसाई गली-गली,
छबीली नार गज-गामिनी।
चंदा जमीं पर आया मनाने,
मनाए न माने मानिनी।
चली रिझाने प्रियवर को,
ओढ़े लाज-दुकूल कामिनी।
बैठी सिरहाने प्रियवर के,
नेह-रस घोले प्रिय वादिनी।
माथ सजी चंदा सी बिंदी,
अंग-अंग दमके ज्यूं दामिनी।
रहे माँग भरी नभ-तारों से,
रहे सदा सुहागन भामिनी।
– सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)