काजल
काजल ,काला है तु,
पर उपेक्षा ना कर सकता तेरा कोई।
नयनों में बस के तु,
रुप धर लेता सुन्दरता का,
नयनों की शोभा बढ़ा कर,
उसे अपने अधीन कर लेता तु।
काजल ,ना जाने कितने नाम तेरे,
काला होते हुए भी तेरे महत्व बहुत,
दुनिया कि नज़र से बचाने को,
तुझसे ही लगाते काला टीका,
दुनिया कि नज़र उतारते उतारते,
कहीं नज़र, तुम्हें ही ना लग जाए।
काजल , कलंक का भी रंग तु,
कहीं दुनिया तुम्हें भी कलंकित ना करदे,
बच के रहना इस दुनिया से,
इसका कोई भरोसा ना जी।
काजल , तुझे देख कर
संन्यासी का भी जियरा डोले,
याद आती हैं उन्हें सांवरे की,
मन उनके सांवरिया सांवरिया बोले।
देख काले काले बदरा को,
काजल , तुझे ही सब याद करें,
अपने महत्व को सुन ,
कहीं तु भी राह भटक ना जाना।