*कागभुशुंडी जी थे ज्ञानी (चौपाइयॉं)*
कागभुशुंडी जी थे ज्ञानी (चौपाइयॉं)
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1)
कागभुशुंडी जी थे ज्ञानी ।
कथा सत्य की सदा बखानी ।।
नील एक पर्वत कहलाया ।
उस पर काग एक था पाया।।
2)
कौवे का तन पक्षी पाए ।
भक्त शिरोमणि खग कहलाए।।
सदा वृक्ष के नीचे रहते ।
कागभुशुंडी गाथा कहते।।
3)
कल्प बीतता किंतु न मरते।
सदा कथा हरि ही की करते।।
हंस कथा सुनने थे आते।
ज्ञान भक्त कौवे से पाते।।
4)
नर से बढ़कर काया पाई ।
काग भक्त की मधु भक्ताई।।
विश्वरूप दर्शन जब पाया।
भक्त काग ने मोह भुलाया ।।
5)
प्रभु मुख में ब्रह्मांड भरे थे।
देख काग निखरे- निखरे थे।।
देखा विश्वरूप तो जाना।
प्रभु को सगुण काग ने माना।।
6)
सीख गरुड़ को वही सिखाई।
कागभुशुंडी ने जो पाई।।
गरुड़ मोह-मद के मारे थे।
प्रभु के यद्यपि अति प्यारे थे।।
7)
प्रभु के पाश काटकर आए।
मोह-पाश के बंधन लाए।।
सोच रहे यह क्या अवतारी ?।।
राम लगे केवल तनधारी।।
8)
भक्ति काग जी से जब पाई ।
सुमति गरुड़ जी को तब आई।।
कहा तीन दोषों को छोड़ो।
सुत धन मान चाह मत जोड़ो।।
9)
कागभुशुंडी जी का कहना।
सदा भक्ति ही मे रत रहना।।
सिद्धि सदा छोटी कहलाती।
भक्ति भक्त को केवल भाती।।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451