कागज की कहानी
एक कागज हूं मैं और क्या है मेरी कहानी
आज कहता हूं मैं अपनी ही जुबानी
जीवन अपना मैंने कैसे जिया
कभी किसी ने सर माथे पर तो कभी तोड़ मोड़ कर फेंक दिया
कभी किसी बच्चे की पुस्तक तो कभी किसी का प्रेम पत्र बना
कहीं-कहीं बेरंग दिखा दो कहीं रंगों में भिगो दिया
कभी कहीं उड़ती पतंग तो कभी पानी में नाव बना
कहीं किसी के आने की दस्तक तो कभी किसी का इंतजार बना
कभी किसी सेठ के घर में तिजोरी की शान बना
तो कभी किसी मयखाने में बेचा हुआ ईमान बना
मैं कागज हूं ऐसा जो माया का संसार बना
मेरे बिना नहीं है जीवन ऐसा सबको ज्ञान मिला
मेरी कहानी का यह तो एक छोटा सा मुखड़ा है
गीत गजल के पन्नों में अभी भी एक बड़ा सा टुकड़ा है
अभी कहां मैं खत्म हुआ दुनिया मेरी दीवानी है यह तो अभी शुरु हुई है पूरी बात बतानी है
रात अंधेरी हो चली है सुबह नई बनानी है
मैं कागज हूं हुई शुरू मेरी कहानी है