कागज़ की नाव.
कागज़ की नाव.
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इक बारिश का दिन था
खेल रही थी मैं अकेली
नाव बनाकर कागज़ की.
खेल रही थी मैं अकेली
नाव बनाकर कागज़ की.
कर रही थी यात्रा उस में
इक छोटी सी चींटी.
देख रही थी मैं ख़ुशी से
अपनी नाव और यात्री को
बदल गयी अचानक प्रकृति
शुरू हुवा था घनघोर वर्षा
साथ आयी थी
तेज़ी हवा भी.
आयी थी बिजली की सुनहरी रेखाएं
सजाने केलिए आसमान को.
तेज़ी से बह रही थी पानी
डूब गयी मेरी नाव और
उस की यात्री पानी में
न कर सका मुछे कुछ भी
बचाने के लिए उसको.
न बचा सका मुछे
अपनी यात्री को
मैं ने रोना शुरू किया
माँ ने आकर डांटा मुछे
लेकिन नहीं पुछा उसने
मेरी आँसू के कारण.
कहा था माँ ने गुस्से से
‘देखो बच्चे बता दूँ मैं ने
तेरी शरारती बातें पाप्पा से ‘
लेकिन उसने नहीं पुछा
मुछ से मेरी आँसू के
कारण कभी भी.
बड़ा हुवा था मैं ने आज.
आज भी मैं रोती हूँ
लेकिन कभी न कोई पूछता है
मुछसे अपनी दुःख का कारण कभी.