कागज़ी शेर
सिद्धू जी बड़े गुरु निकले ,
फेंका ऐसा दाव ।
मुख्यमंत्री सहित सभी नेता,
उन्हें देने लगे भाव ।
देने लगे भाव तो मनुहार सब ,
उनका करने लगे गए ।
घर में कैद होकर क्यों रह गए मियां ,
कुछ तो गुफ्तगू कीजिए ।
रूठे हैं आप किस खता पर ,
कुछ तो बयां कीजिए ।
गोदी मीडिया भी कशमकश में ,
कैसे और क्या नमक मिर्च लगाएं,
अब राई का पहाड़ और ,
खबरों का बतंगड़ कैसे बनाएं ?
मगर “आप” जी ने कोई कसर न छोड़ी ,
ऐसे में पलीता सुलगाने में ।
नहीं बाज आए अपनी आदत से ,
पराई आग में अपनी रोटियां पकने में।
आशा है जलेगी आग तो धुआं ,
सिद्धू जी तक अवश्य पहुंचेगा।
दुबका पड़ा सियार अपने खेमे से ,
बाहर निकलेगा ।
और “आप”जी के बहाने से ही सही ,
सिद्धू जी का मौन व्रत टूटेगा।
और पंजाब की सियासत का कागज़ी शेर,
फिर दहाड़ मारेगा ।