#काकोरी_दिवस_आज
#काकोरी_दिवस
■ महानायकों को नमन्।
● स्वाधीनता समर का सूत्रपात
【प्रणय प्रभात】
पराधीन भारत में वर्ष 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” से 17 साल पहले की घटना स्वाधीनता समर के सूत्रपात की उस सच्चाई का प्रमाण है, जिसे आज़ादी के बाद बड़े झूठ ने हाशिए पर धकेलने का कुत्सित कृत्य किया। सर्वविदित है कि 09 अगस्त 1925 वह ऐतिहासिक दिन है, जब लखनऊ के समीप “काकोरी” रेलवे स्टेशन के पास पराक्रमी क्रांतिकारियों द्वारा दिन दहाड़े आठ डाउन ट्रेन को रोक कर सरकारी खजाना लूट लिया गया था। आज उस खास दिन को दिल से याद करने का दिन है, जब पराधीनता के सघन काले बादलों को कड़कती बिजली की तरह चीर कर देश के महान सपूत सिर पर कफन बांध कर फिरंगी हुकूमत के सामने आए। आज ही के दिन काकोरी कांड को अंजाम देकर मुट्ठी भर युवा क्रांतिकारियों के दल ने अंग्रेजों के दमन चक्र को खुली चुनौती दे डाली। इस साहसिक घटना को अंजाम देते हुए खजाना लूटने वाले क्रांतिवीर देश की विख्यात क्रांतिकारी संस्था हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य थे। जिनकी अग्रणी भूमिका और सर्वोच्च बलिदान को सत्ता हथियाने की सुनियोजित सोच के साथ धूमिल करने का कुत्सित प्रयास किया गया। याद रखा जाना चाहिए कि “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत से 3 साल पहले शहीदे-आज़म सरदार भगत सिंह अपने साथी राजगुरु व सुखदेव के साथ क्रांति की अमर कथाएं रचकर फांसी के फंदे को हंसते-हंसते चूम चुके थे। भूला यह भी नहीं जाना चाहिए कि मार्च 1939 के इस ऐतिहासिक बलिदान से पहले मां भारती के अमर सपूत चंद्रशेखर आज़ाद प्राणोत्सर्ग कर आज़ादी की लड़ाई में अपना नाम स्वर्णाक्षर में अंकित करा चुके थे। वहीं काकोरी कांड के महानायक पंडित रामप्रसाद विस्मिल, अशफ़ाक़उल्ला खान व रोशन सिंह जैसे भारतीय सिंह अपना जीवन होम कर चुके थे। अंग्रेजों के ख़िलाफ़ बगावत की आंच मूलतः इन्ही बलिदानों की देन रही। जिनक प्रति समूचे राष्ट्र को चिर कृतज्ञ व ऋणी होना चाहिए।
अब जबकि देश आज़ादी का अमृत वर्ष मना रहा है। क्रांति व आज़ादी के संघर्ष की पृष्ठभूमि से उन बिष-बेलों को उखाड़ना बेहद ज़रूरी है जिन्होंने असंख्य बलिदानों के वृक्ष सूखा डाले। अमृत वर्ष में काकोरी कांड के महानायकों को कौटिशः नमन। इस अनुरोध के साथ, कि इस ऐतिहासिक दिन व घटना से भावी पीढ़ी को अवगत कराने का प्रयास मौजूदा सरकार ईमानदारी से करे।
#जय_हिन्द।
“#वन्दे_मातरम
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