कांटो का जंगल
बादलों
बेमौसम ही सही पर
बरस जाओ
मुझे घुटन हो रही है
खुली जगह पर भी
सांस अब तो नहीं आती
हवाओं के दायरों को भी
बढ़ाओ जो
जिस्म से निकलती जान
वापिस नहीं आती
यह रिश्ते
समय के साथ साथ
जितने अधिक परिपक्व
हुए जा रहे हैं
उतना सता रहे हैं
मैंने तो सोचा था कि
यह मुझे एक पेड़ की
शीतल छांव देंगे
मेरे घर को खुशियों से
भर देंगे
फूलों की खुशबुओं से भरी
बहार देंगे
मुझे भरपूर प्यार देंगे
यह तो पर मेरी सांसे ही
मुझसे छीने जा रहे हैं
एक कांटो का जंगल
उपजा रहे हैं
मुझे चीरकर
एक जंगली जानवर की
तरह
फाड़ डालने के लिए।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001