कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
कांटों की राह मुझे चलने दो
मुझे अपने आप संभलने दो
जीवन क्या है मुझे जीना है
मुझे हर आफत से लड़ने दो
कांटों की राह मुझे………….…..
ये जीवन नहीं आसान बहुत
यहां क़दम क़दम इम्तिहान बहुत
यहां ऊंच नीच का भेद बड़ा
मुझे खुद को साबित करने दो
कांटों की राह मुझे…………….
ये देश मेरा खुशहाल रहे
दुश्मन हर वक्त बेहाल रहे
मुस्काता रहे तिरंगा हर दम
शरहद पर मुझको जाने दो
कांटों की राह…………..
ये धर्म लड़ाई बंद करो
ना मानवता में गंध करो
हम एक थे एक ही हो जाएं
मुझे गीत तुम ऐसे लिखने दो
कांटों की राह…………..
ना मंजिल इतनी आसान मिले
कांटों में देखो गुलाब खिलें
हिम्मत ना कभी होती बेजा
आंधी में दीप जलाने दो
कांटों की राह…………
चन्द्र गुप्त कभी तुम पढ़ लेना
भगवान बुद्ध को पढ़ लेना
पढ़ लेना कभी तुम हरिश्चंद्र
नेताजी सुभाष सा लड़ने दो
कांटों की राह …………….
बाधाओं से हिम्मत कब हारी
कब वक़्त एक सा रहा भारी
संघर्ष बना जीवन जिसका
मुझे ऐसे पात्र तुम पढ़ने दो
कांटों की राह…………….।
मैं वक्त बदलने वाला हूं
बाधाओं से लड़ने वाला हूं
मंजिल तक जाना है मुझको
मुझे जीत का स्वागत करने दो
कांटों की राह……………।।
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प्रमाणित करता हूं कि प्रतियोगिता में प्रस्तुत गीत मेरा मूल व अप्रकाशित गीत है
गीतकार/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
हापुड़,उत्तर प्रदेश