काँटों पर चलने की तो मेरी फ़ितरत हो गयी
जब मैं पाया उसको ही सारी राह में बिखरे हुए
काँटों पर चलने की तो मेरी भी फ़ितरत हो गयी/
जब मैं चाहा बन चिराग़ दुनिया को रोशन करूँ
इन हवाओं की तो मुझसे ही ख़िलाफ़त हो गई/
इतने ख़्वाबों को तो मैं अपनी आँखों में ढोता रहा
इनकी आँचों से ही अब मुझको हरारत हो गयी/
जिनकी ख़ातिर मैं तो इस दुनिया से टकरा गया
आज तो उनको ही ख़ुद मुझसे शिकायत हो गयी/