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21 Jan 2017 · 1 min read

काँटों पर चलने की तो मेरी फ़ितरत हो गयी

जब मैं पाया उसको ही सारी राह में बिखरे हुए
काँटों पर चलने की तो मेरी भी फ़ितरत हो गयी/

जब मैं चाहा बन चिराग़ दुनिया को रोशन करूँ
इन हवाओं की तो मुझसे ही ख़िलाफ़त हो गई/

इतने ख़्वाबों को तो मैं अपनी आँखों में ढोता रहा
इनकी आँचों से ही अब मुझको हरारत हो गयी/

जिनकी ख़ातिर मैं तो इस दुनिया से टकरा गया
आज तो उनको ही ख़ुद मुझसे शिकायत हो गयी/

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 339 Views
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