काँच बांस के बहँगी
काँच बांस के बहँगी
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लइकन के जिनिगी खतिरा हऽ छठ के ई तिउहार हो
काहें काँचे बतिये फल नोचेला गाँव-जवार हो?
नींबू बतिया कोहड़ा अउरी बतिये लउकी आइल बा
आदी के पौधा ले देखीं बिन बइठल उखराइल बा
येह परब में भाई काहें नाजुक पौध उँखारल जा
लइकन खातिर पूजा में पौधन के लइका मारल जा
पौधन के बरबादी से ना घर होई उजियार हो-
काहें काँचे बतिये फल नोचेला गाँव-जवार हो?
बतिया केरा काँच अनारस हरदी काँच बजारी में
ममफलियो कुछ काँचे बा बतिये बा बोड़ा थारी में
सुथनी ओल आ बतिये बइर लोग सभे उपरावेला
धरती दिहलसि भेट मनुज के लोग समझ ना पावेला
कुदरत के उल्टे लवटावल ना होई स्वीकार हो-
काहें काँचे बतिये फल नोचेला गाँव-जवार हो?
काँचे अरुई कोन कोड़ाला काँच शरीफा आवेला
काँच बांस के बहँगी वाला गीत ज़माना गावेला
हरिहर पौधा नष्ट कइल तऽ भारी पाप कहावेला
पूजा बदे लोगवा काहें येही खातिर धावेला
कण कण में बाड़ें ईश्वर तऽ एकर का दरकार हो?-
काहें काँचे बतिये फल नोचेला गाँव-जवार हो?
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 02/11/2019