” क़ैद में ज़िन्दगी “
तीस की उमर में पचास सी लगती है
क़ैद में ज़िन्दगी, उदास सी लगती है
ये ऊँची दीवारें, और बेवश हैं आंखें
ये फूलों की डाली बेज़ार सी लगती है
क़ैद मन की उलझन और अपनों से दूरी
वीणा की टूटी हुई तार सी लगती है
ये चाँदनी रातें और अपनों की बातें
बेमौसम के बारिश की धार सी लगती है
क़ैदियों के तराने, ये फिल्में, ये गानें
गीत, संगीत सब खटराग़ सी लगती है
उलझा-उलझा तन है,बोझिल सा मन है
“चुन्नू”मीठी बातें भी,कटार सी लगती है
आहिस्ता-आहिस्ता बीमार सी लगती है
बीवी और बच्चों पर भार सी लगती है
— क़ैद में ज़िन्दगी उदास सी लगती है —
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)