क़ुर्बानी
ज़िंदगी भर हालातों से लड़ता रहा कभी
हार नही मानी ,
हालाते हाज़िरा में अपनों से लड़ न सका
आख़िर हार मानी ,
अपनो से हार का समझौता
दिल से कर लिया है ,
अपनो से हारने में कुछ तो
क़ुर्बानी का सिला है ,
जिन अपनो की खुशी ख़ातिर हम
ज़िंदगी भर लड़़ते है ,
वो ही ख़ुदगर्ज़ अपने जीते जी हमें
ज़िंदा लाश बना देते हैं।