#क़सम_से…!
#क़सम_से…!
तमाम लोग ज्ञान का ऐसा झरना बहाते हैं कि उसके नीचे कुलामुण्डी खाने का मन करता है। विद्वता का ऐसा परनाला प्रवाहित करते हैं कि उसके नीचे शीर्षासन कर पाप धोने की इच्छा हिलोर मारने लगती है। शिक्षा के नल की टोंटी इस तरह खोलते हैं कि विचार की धार के नीचे चूं-चूं चिरैया की तरह फुदकने का जी करता है। जय हो ज्ञानमतियों और ज्ञानदासों की। जिनके चरण पकड़ कर लटकी धरती रसातल में जाने से बची हुई है और आसमान दीदे फाड़ कर ताक रहा है। और कर भी क्या सकता है बेचारा…? मेरी तरह स्तुति करने के अलावा। जय हो। जय देवसेना, जय बाहुबली। जय माहिष्मति।
🙅प्रणय प्रभात🙅