‘कह मुकरी’
1-
उसके बिन सखि रहा न जाये,
तन को हर पल ताप जलाये।
पड़ा अटरिया ज्यों रूप कँवर,
का सखि साजन ना सखि चंवर।।
2-
मछली सा हम को तड़पाये,
दूरी उससे सही न जाये।
वो रूठे नहीं जिन्दगानी,
का सखि साजन ना सखि पानी।।
3-
तन छूले सिहरन उठ जाये,
धड़कन उससे ताल मिलाये।
उसके बिन मैं बचूँ न साबुत,
का सखि साजन ना सखि मारुत।।
4-
आये जब वह मुख खिल जाता,
बिन मागे सब कुछ मिल जाता।
धक-धक धक धड़के है छाती,
का सखि साजन ना सखि पाती।।
-गोदाम्बरी नेगी