कह मुकरियां
विधा-कह मुकरियां
“रात भयी आके सताये।
भोर भयी वो चला जाये।
है वो मुझे बहुत प्यारा,
है सखी साजन,ना सखी तारा।।
आगे पीछे हर पल घूमे
गालों को मेरे चूमे
लगता है नजर का काला
है सखी साजन,ना सखी बाला।।
देखे जब मोहे बुलाये
रात को छत पर आये
लगे जैसे कितना प्यारा
है सखी साजन,ना सखी तारा।।
देखो तो वो कितना चँचल
पकड़ खींचे मेरा आँचल
सताने में मोहे आये मजा
है सखी साजन,ना सखी हवा।।
✍संध्या चतुर्वेदी
मथुरा (उप)