” कह दो जो कहना है ” !!
गीतिका
तुम मेरे हो मेरे बनकर , दिल में ही रहना है !
मुझे स्वीकृति दे दो चाहे , जग से ना कहना है !!
नई कहानी रोज़ लबों पर , पास हमें लाती है !
औ विरोध के स्वर न उपजे , हवा संग बहना है !!
इन्तज़ार पल पल रहता है , समय हमें है बांधे !
पल भर का ही साथ भले हो , कह दो जो कहना है !!
कैद करी जो मुस्कानें है , उन्हें खुला तो छोड़ो !
अहंकार है कभी तुम्हारा , हमें लगे गहना है !!
पलकें झपकाकर अँखियों से , जाने क्या कह डाला !
कहर अगर बरपाया है तो , हमें उसे सहना है !!
मौन तुम्हारा सदा खले है , भेद ह्रदय के खोलो !
महल रेत के खड़े किये तो , उनको तो ढहना है !!
छवि अनुपम है मन को भाये , चलो न यों बल खाकर !
दूर हुए आंखों से जब भी , चाहत को पलना है !!
स्वरचित / रचियता
बृज व्यास
फरीदाबाद