कह दो इन आँसुओं से….
…कह दो इन आँसुओं से…
कह दो इन आँसुओं से, वापस फिर न आना
मुझे साथ सनम के, भाता है मुस्कुराना !
न जाने क्यों है रूठा, ख़ता क्या थी मेरी
तेवर तो देखो उसके, कैसे हैं कातिलाना !
लाख जतन करके, हाय रे ! मैं तो हारी
कोई तो मुझे सिखाए, कैसे उसे मनाना !
जाऊँगी अब कहाँ मै, जानता है वो भी
उस बिन नहीं जहां में, मेरा कोई ठिकाना !
अपनी-अपनी धुन में, मगन यहाँ तो सारे
सुने न कोई मेरी, बड़ा मगरूर है जमाना !
याद आए रह-रह, वो गुजरा हुआ जमाना
समां वो हद से प्यारा, बातें वो आशिकाना !
चैन चुराएँ मन का, सुकून भी हर लें सारा
कातिल निगाहें उसकी, मौसम वो शातिराना !
बात कभी न मेरी मानी, की सदा मनमानी
ए वक्त, अब तो तुम ही उसके नाज उठाना !
रूठा रहे वो मुझसे, न देखे चाहे पलट के
मैयत पे मेरी पल भर, कोई उसे ले आना !
उसने जो भी चाहा, हर बात उसकी मानी
अब जैसे उसे पसंद हो, वैसे मुझे सजाना !
लंबी उमर को उसकी, उपवास मैंने रखा
मन-मानस में बिंबित, देखा रूप सुहाना !
जहाँ-जहाँ वो जाए, उसे याद दिलाए मेरी
गुंजित हो हर दिशा में, मेरा ये नेह-तराना !
समर्पित तुम्हें फिज़ाओं, मनके मेरे मन के
मैं न रहूँगी जब, तुम्हीं इनको गुनगुनाना !
मैं हूँ उसकी ‘सीमा’, विस्तार है वो मेरा
कैसे उसे मैं ढूँढूँ, कहाँ उसका आशियाना !
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मृगतृषा” से