*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)
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कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे
1)
भोले-भाले थे जो मन के, चालाकी से बचते
छोटे-से घर में रहकर खुश, उत्सव प्रतिदिन रचते
रहते तो थे जग में लेकिन, कब संसारी होते थे
2)
नहीं वृत्ति छल और कपट की, जिनमें किंचित दीखी
निजी तिजोरी भरने वाली, कला न कलुषित सीखी
जिनके मुख के शब्द हमेशा, सत्व्रतधारी होते थे
3)
दिखा गए सत्पंथ हमें जो, मरुस्थल में जीने का
दे अमृत जग को बदले में, खुद विष को पीने का
संतोषी थे प्रतिपल-प्रतिक्षण, प्रभु आभारी होते थे
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451