कहूँ तो कैसे कहूँ –
कैद पिंजरे में दिन और रात, कहूँ तो कैसे कहूँ,
कैद कर दिए हैं जज्बात ,कहूँ तो कैसे कहूँ !
हक़ है हमें भी फिजा की खुली साँसो का ,
निरी इंसानियत की बात ,कहूँ तो कैसे कहूँ !
दिल में बस उसी के ख़्यालात, कहूँ तो कैसे कहूँ,
बीते दो पल की मुलाकात, कहूँ तो कैसे कहूँ !
इल्जाम बेबफाई का हम पर लगा कर ‘असीमित ‘
दुनिया करे सवालात ,कहूँ तो कैसे कहूँ !
डॉ मुकेश ‘असीमित’