कही अनकही
कही अनकही
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मन के उदगार
जब मन में ही रह जाते है,
चाहकर भी हम केवल
कसमसाकर रह जाते हैं।
उमड़ घुमड़ रहे भावों के
भँवर जाल में बस
छटपटाते हैं,
अपनी बातो को हम
व्यक्त करना चाहते भी हैं
और नहीं भी चाहते हैं,
बस इसी उधेड़बुन में
उलझकर रह जाते हैं।
अपने भावों की अभिव्यक्ति में
जब हम सफल नहीं हो पाते,
तब कही अनकही बातों के
भँवर में हम
डूबते उतराते ।
@सुधीर श्रीवास्तव