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29 May 2024 · 1 min read

रुसवाई न हो तुम्हारी, नाम नहीं है हमारा

एक अरसे के बाद, ख़त आया है तुम्हारा,
पता सही है मगर, नाम भूल गये हो हमारा।
☘️☘️
ख़त के आखिर में जो शे’र लिखे हो उम्दा,
हाल-ए-जिगर की तरफ़ कर रहा है इशारा।
☘️☘️
अच्छा है, कुछ रूमानी लम्हे याद हैं तुम्हें,
थोड़ी छुअन, थोड़ा तख़ल्लुस याद है हमारा।
☘️☘️
भूलने की लाख कोशिशें की, भूले नहीं तुम,
हमारी ग़ज़लें आज भी, तुम्हें देती हैं सहारा।
☘️☘️
ज़वाब लिखा है, तुम्हारे पुराने पते पर ही हमने,
तुम्हारी रुसवाई न हो, कहीं नाम नहीं है हमारा।

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