रुसवाई न हो तुम्हारी, नाम नहीं है हमारा
एक अरसे के बाद, ख़त आया है तुम्हारा,
पता सही है मगर, नाम भूल गये हो हमारा।
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ख़त के आखिर में जो शे’र लिखे हो उम्दा,
हाल-ए-जिगर की तरफ़ कर रहा है इशारा।
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अच्छा है, कुछ रूमानी लम्हे याद हैं तुम्हें,
थोड़ी छुअन, थोड़ा तख़ल्लुस याद है हमारा।
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भूलने की लाख कोशिशें की, भूले नहीं तुम,
हमारी ग़ज़लें आज भी, तुम्हें देती हैं सहारा।
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ज़वाब लिखा है, तुम्हारे पुराने पते पर ही हमने,
तुम्हारी रुसवाई न हो, कहीं नाम नहीं है हमारा।