कहीं तीसी फुला गईल
कहीं तीसी फुला गईल,
कहीं मिसरी घुला गईल,
ई बसन्त आवत-आवत,
हियरा जुड़ा गईल !
लीचियो के डारी मोजर,
अमवो के गाछ साजल,
कोईली बिदेसी आके,
सब डार-पात नाचल ।
गेन्दा फुला गईल ह,
उड़हुल फुला गईल बा,
मह-मह करेला सगरो,
केतकी झुला गईल बा ।
मन आगु-पाछु डोले,
सब गाछ कोंढ़ीयाइल,
जैसे कि जोजनगंधा
देहिया छुआ गईल ।
सरसों के फूल पीयर,
मेहंदी के पात हरियर,
झूम-झूम के नाच उठल,
फागुन में ढाब-दीयर ।
चंदा केहु निहारे,
केहु बन गईल चकोरी,
मनही में मुस्काली,
नेहिया के बन नटोरी ।