कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे
जो विरोधी थे कल तक
आज साथी बन रहे
जो भ्रष्टाचारी थे कल तक
आज सदाचारी दिख रहे
सोच अलग थी अबतक जिनकी
वो भी साथी बन रहे
ये क्या हो रहा है
कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे ।।
जो असामाजिक थे कल
आज संस्कारी लग रहे
शुचिता की लड़ाई छोड़
आज वोट प्यारे लग रहे
सब मूल्यों को छोड़
वोट बैंक भारी लग रहे
ये क्या हो रहा है
कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे ।।
बाहुबली भी अब तो
लोकप्रिय नेता लग रहे
उन्हीं के भरोसे अब
कुर्सी पाने के सपने पल रहे
रूठों को मनाने के दौर
दोनों तरफ चल रहे
ये क्या हो रहा है
कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे।।
व्यस्तताओं को छोड़ नेता
फिर से गांव का रुख कर रहे
जनता को भोली मान
उनके मन को बहला रहे
विकास के वादों से
उनके ज़ख़्मो को सहला रहे
ये क्या हो रहा है
कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे।।
नया कहके पिछले वादों का
दम फिर से भर रहे
पांच साल पहले के शिलान्यास
फिर से कर रहे
जनता के बीच जाकर बस
आश्वासनों के कसीदे पढ़ रहे
ये क्या हो रहा है
कहीं चुनाव तो नहीं आ रहे।।