कहीं किसी मोड पर…
सर्दी की मौसम में सुना है शामें रंगीन होती है,
जुकाम हो जाता है, तो क्या हुआ,
दिन बेहतरीन होती हैं।
जाड लगता है जब बारिश होती है तब,
फिर भी रंजिशें युँ ही कटती रहती हैं शामें,
जाने क्यूँ मेरे लिए हम राज रोके रखी है, गुलबान तलक।
रहमें करम सबुत के घेरो में,
ढल जाता है तनिष्क फिरौती का,
डुब गया हूँ शामों में कठिनाई और शराफ़त की नजाकत में।
साँसों में आॅक्सीजन की जगह कार्बन जा रही, सोंचो क्युँ ऐसी ही रश्म हैं जीवन की डोरी का।
शबनम फुल बनकर तराशी गई पन्नें,
जा रही है हाथों से युँ प्यादा तो नहीं कबाबों का।
सादगी उमड रही है,
शाम ढल रही है,
क्या एकता यही है हमारी दिल्लगी का।
एक शराबी भी शराब पी प्याला छोड जाता है,
तनिक समझो बिना ताबिज के कोई इतना क्युँ इठलाता है।
दुबक जाओ सर्द हवा है,
कहीं ठंढ न लग जाए,
आई है रूख मोडकर ये बीमारी दिल की, कहीं किसी मोड पर बैवजह बदनाम न कर जाए।