कहानी…. विनम्रता
विद्या विनय यानी विनम्रता देती है। यह मनुष्य को पात्रता भी देती है। विद्या मनुष्य को जीवन की विविध समस्याओं का समाधान देती है। वह समस्याओं से उबरने का विकल्प भी देती है। ऐसा सभी विद्वान कहते और मानते हैं। वे सार्वजनिक मंचों पर बड़े खुले मन से ऐसी बातें बेलौस अंदाज में कहते भी हैं। हर व्यक्ति ने ऐसी बातों को समय समय पर कहीं न कहीं सुना होगा। यह बात अलग है कि इस अवधारणा में उसे सहज विश्वास हो या नहीं। ये बातें कभी मनुष्य को सोच के गहरे सागर में गोते लगाने को भी विवश कर देती हैं। किसी पात्र विशेष का चरित्र किसी दूसरे को सोचने को विवश कर देता है कि क्या वाकई विद्या विनम्रता देती है?
पेशे से अखबारनवीस रमेश को भी एक बार ऐसे ही पसोपेश भरे सवाल से दो चार होना पड़ा। एक विश्वविद्यालय में बड़ा जलसा आयोजित किया गया था। इसके मुख्य अतिथि देश के एक कद्दावर राजनीतिक और पूर्व मंत्री थे। क्षेत्र के बड़े बड़े नामवर लोगों को उस जलसे में आमंत्रित किया गया था। जलसे के लिए जोरदार तैयारियां की गई थीं। एक विश्वविद्यालय के बड़े सभागार में आयोजित उस जलसे में अनेक लोग और पत्रकार विशेष रूप से आमंत्रित थे। समारोह में शिरकत करने वाले भी खूब पढ़ें लिखे लोग ही थे। भागीदारी के लिहाज से उस जलसे में विद्यार्थियों की भागीदारी सर्वाधिक थी। पत्रकार रमेश भी उसमें पहुंचा था कवरेज के लिए। उसकी रुचि यह समझने में ज्यादा थी कि वर्तमान परिवेश में शिक्षकों और विद्यार्थियों का आचरण कैसा है ? वह पत्रकारों के लिए निर्धारित दीर्घा की एक कुर्सी पर जा जमा। वहीं से जश्न के हर प्रतिभागी पर नजर रखने लगा। शुरुआत में जश्न के आयोजकों ने छोटी मोटी सूचनाएं मंच से प्रसारित कीं। उनकी बातों से साफ जाहिर हो रहा था कि वे अतिथियों के आने के पूर्व हाल भर जाने के लिए चिंतित थे। कुछ वरिष्ठ शिक्षक दूसरे विभागों के शिक्षक को जलसे में जल्द पहुंचने की ताकीद कर रहे थे। कुछ देर तक जब हाल आधा ही भरा तो एक वरिष्ठ शिक्षक का पारा अचानक चढ़ गया। दरअसल वो जलसा आयोजन समिति के अहम ओहदेदार भी थे। वो अचानक मंच पर प्रकट हुए और विभागवार छात्रों की हाजिरी सभागार में ही लेने लगे। जिन विभागों के विद्यार्थियों की संख्या कम होती वे अपनी भाव भंगिमा से उन पर नाराज़गी जताते। करीब दस मिनट तक वो विभागवार हाजिरी जांचते रहे। फोन पर दूसरों को फटकारते भी रहे। साथ ही यह धमकी भी देते रहें कि जो शिक्षक जलसे में नहीं आए हैं उनके खिलाफ नोटिस जारी होगी। यही नहीं उनके खिन्न तेवर देख एक और शिक्षक मंच पर प्रकट हुए। मंच से उन्होंने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि जो विद्यार्थी इस कार्यक्रम में नहीं आए हैं उनको सेशनल परीक्षा में देख लिया जाएगा। उनको अंक कम मिलेंगे। वे भूल गए शिक्षक की मर्यादा भी। बाद में जब मंच से हटे तो भी कुछ बुदबुदाते हुए।
मुख्य अतिथि जी आए तो बहुत सारे लोग उनके पीछे पीछे आ गए। जब हाल दर्शकों से खचाखच भर गया तो आयोजकों के चेहरों पर मुस्कान तैरती दिखी। भारी हुजूम देखकर मुख्य अतिथि और पूर्व मंत्री भी खूब गदगद दिखे। आयोजकों की ओर से उनकी यश गाथा का वाचन करवाया गया। फिर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी पर्दे पर दिखाई गई। बाद में बारी बारी सभी अतिथियों ने अपने जीवन के अनुभव विद्यार्थियों को सुनाए। अंत में जब मुख्य अतिथि के उद्बोधन की बारी आई तो वे खड़े हुए। शुरुआत में उन्होंने जो बातें की वे तो विनम्रता भरी लगीं। लेकिन बाद में उनके लहजे में आत्मश्लाघा और उपदेश का पुट जब गहरा हुआ तो विद्यार्थियों में से कुछ ने हूटिंग शुरू कर दी। फिर क्या था मुख्य अतिथि और आयोजकों की विनम्रता का पैमाना चकनाचूर हो गया। आज देश में रोजगार की कोई कमी नहीं है उनके इस बयान पर जब विद्यार्थियों ने जमकर हूटिंग की तो मुख्य अतिथि बिफर पड़े। उनके साथ उपस्थित वरिष्ठ शिक्षक विश्वविद्यालय के गार्डों की ओर मुखातिब होते हुए बोले, देखो जो हुड़दंग कर रहे उन्हें कार्यक्रमस्थल से बाहर निकालो। एक वरिष्ठ शिक्षक बोले, प्राक्टोरियल बोर्ड के सभी सदस्य ध्यान दें। शोर मचा रहे विद्यार्थियों को बाहर निकालें। एक शिक्षक लगभग ललकारने वाले अंदाज में विद्यार्थियों से बोले, शांत रहो नहीं तो देख लिया जाएगा। अतिथियों के आसन के आसपास कुछ क्षण के लिए अव्यवस्था का काला ग्रहण साफ साफ नजर आने लगा। तब रमेश को लगा कि शिक्षा के मंदिरों में भी सवालों से भागने वालों की लंबी जमात एकत्रित हो गई है। विद्यार्थियों के सवालों का विनम्रता से जवाब देकर समझाने वाला कोई भी शख्स दूर दूर तक नजर नहीं आया। मंच पर जो भी था वह विनम्रता और पात्रता का भाव को चुका था। रमेश अव्यवस्था से खिन्न हो कार्यक्रम स्थल से बाहर निकल आया। देर तक वह सोचता रहा कि कहां खो गई है सवालों को उत्तर से शांत करने वाली विद्या। क्या सवालों का जवाब धमकियों से देना किसी विद्वता की निशानी है?
क्या आज के युवाओं को उनके सवालों का जवाब विनम्रता से नहीं दिया जाना चाहिए। क्या युवाओं के सामने झूठे आंकड़े और दावे परोसना ही विद्वता की पहचान है। क्या आंकड़ों को परोसते समय श्रोताओं की पात्रता का ख्याल आयोजकों को नहीं रखना चाहिए। ऐसे तमाम सवालों के सागर में देर तक गोते लगाता रहा रमेश पर उसे कोई जवाब न मिला। अगले दिन वह तब और चौंका जब दूसरे कई अखबारों में यह खबर छपी दिखी कि आज कहीं भी रोजगार की कमी नहीं है।