कहानी : रक्षासूत्र…. बहिन
लघुकथा : रक्षा सूत्र…… बहन
सुबह अपने भाई विनय से फोन पर बात करने के बाद से ही रीता बहुत उदास व दुखी थी। यंत्रवत घर के काम निबटाते समय उसके दिमाग में यही बात बार-बार टीस रही थी कि भाई ने एक बार भी उसे अपने यहाँ राखी बांधने आने का निमंत्रण नहीं दिया और ना ही खुद बहन के यहाँ आने की कोई मंशा ही जताई थी,जबकि उसके यहाँ
से जयपुर केवल तीने घंटे तक का सफर ही होता है।
राखी में सिर्फ पाँच दिन ही बचे थे। हर साल की तरह उसका भाई को अपने हाथों राखी बांधने का बहुत मन था और हो भी क्यों नहीं…. कोरोना महामारी से जूझकर उसके भाई ने अपना नया जीवन पाया था।
वैसे तो दोनों में मात्र पौने दो साल का अन्तर था लेकिन छोटी बहन रीता ने भाई को शादी हो जाने के बाद ही भैया कहना शुरू किया था वरना तो दोनों में बराबरी वाली तूतू – मैंमैं ही होती थी।
अब तक अपने भाई से हर बात आपस में प्यार और अधिकार से जताने वाली रीता को बहुत बुरा भी लग रहा था कि…. राखी पर उसके आने का जिक्र करने पर भी विनय ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए कैसे दो टूक शब्दों में उसे ही कह दिया था कि, “रीता तू इस बार राखी समय से पोस्ट के द्वारा ही भेज देना!” इतना सुनकर ही रीता का मन बुझ गया और जवाब में उसके मुँह से…”ह्म्म्म्म! ठीक है भाई….”ही निकला! उसके बाद रीता ने बाकी सबके हालचाल की बातें भी बहुत अनमने मन से ही की थीं….!
नाश्ते की तैयारी में व्यस्त रीता दिमागी कशमकश में उलझी तीन महीने के पिछले घटनाक्रम में पहुँच गई … भाई विनय की कोरोना संक्रमण से ग्रस्त गंभीर होने की खबर फोन पर जब भाभी ने दी तो वो स्वयं व परिवार की परवाह ना करते हुए उसी शाम अस्पताल भाई को संभालने पहुँच गई थी। विनय को सांस लेने में परेशानी बहुत थी तो उसे आई सी यू में रखा गया था।
अस्पताल में भर्ती विनय का जीवन बचाने के लिए किये गये संघर्ष का एक एक दिन कठिन परीक्षा सा याद आ रहा था…! अति गंभीर अवस्था से विनय को बचाने के लिए चिकित्सकों द्वारा किये गये हर प्रयास, रीता व बड़े भाई निशांत की देखभाल और जी जान से की गई हर सेवा का ही परिणाम था कि 45 दिनों में अस्पताल से स्वस्थ होकर विनय को घर ला सके थे।
वो भी अपने परिवारों से दूर रहते…..!! मन ही मन सोचते हुए उसकी आँखें ना चाहते हुए भी छलक पड़ी…. “कितनें निराशा और हताशा के दिन थे….!”
रीता का मन थोड़ा मन हल्का हो गया तो दिलो-दिमाग को संयत कर उसने आनलाइन ही विनय व बडे़ भाई निशांत को राखियाँ पोस्ट कर दीं।
राखी की सुबह वो जल्दी ही उठ गई थी,… सोचकर मन तो उदास ही था कि इस बार वो एक भी भाई को अपने हाथ से राखी नहीं बांध सकेगी।
नहा धोकर पूजा व खाने की तैयारी कर ही रही थी कि बाहर डोर बेल की आवाज सुनकर वो चौंक गई और बेटी निष्ठा को दरवाजा खोलने का बोल बुदबुदाई, “कौन आ गया आज त्योहार के दिन सुबह-सुबह….!”तभी बेटी निष्ठा की चहकती आवाज सुनकर वो भी उत्सुकता वश किचन से सीधे दरवाजे पर आई तो सामने विनय को सपरिवार खड़ा देख आश्चर्यचकित हो गई थी….! “…विनय भाई!…. तू इस तरह अचानक…. तूने तो राखी मंगा ली थी ना मुझसे… फिर??” रीता ने एक साथ कई प्रश्न विनय से कर डाले।
विनय घर में अंदर आते हुए रूंधे गले से बोला कि,” रीता तूने छोटी बहन होने के बावजूद जिस तरह अपनी व परिवार की चिन्ता ना करते हुए जो कुछ मेरे लिए किया है मैं जीवन भर तेरा ऋणी रहूँगा…. और आज के दिन तू नहीं.. बल्कि मैं तुझे अपने हाथों से रक्षासूत्र (राखी) बांँधूगा….. ! रक्षाबंधन का सच्चा फर्ज़ तो सही मायने में तूने मेरी जीवन रक्षा करके निभाया है। ”
ये सब सुनकर रीता के आँखों से भी आंसू छलक पडे़…!
उषा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक अधिकार सुरक्षित