कहानी मंत्र कि समीक्षा
मंत्र दो समाजों कि पृष्ठभूमि विचार व्यक्तित्व के द्वंद कि कहानी है।
डॉ चड्डा जो पेशे से डॉक्टर है और उच्च जीवन शैली के आदि है जिसके कारण वह अपने मूल कर्तव्य कि भी बलि चढ़ाने से नही चूकते ।
कहानी कि शुरुआत एव अंत दोनों ही मार्मिक संवेदनहीनता एव
संवेदनशीलता के दो ध्रुवों के शांत टकराव के झकझोर देने वाला
परिणाम है ।
डॉ चड्डा गोल्फ खेल कर घर लौटने
के लिये निकलते है तभी डोली में अपने बीमार बेटे को लिए भगत डॉ चड्डा के पास आता है और बच्चे को बचाने की गुहार में
#बूढे ने पगड़ी उतार कर चौखट पर रख और रो कर बोला एक नजर देख लीजिए सात लड़को में यही बचा है हुजूर हम दोनों रो रो कर मर जायेंगे आपकी बढ़ती होय दिन बंधु #
डॉ चड्डा पर कोई फर्क नही पड़ता है डॉ चड्ढा अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चल देते है।।
डॉ चड्डा जैसे पढ़े लिखे समाज के संभ्रांत व्यक्ति कि संवेदनहीनता इस
कहानी का एक पक्ष है जो आज भी
सर्वत्र परिलक्षित होता रहता है।
कहानी का कमजोर पक्ष डॉ चड्डा जैसे अनुशासित जीवन शैली के प्रसिद्ध चिकित्सक द्वारा अपने एकलौते बेटे को सांप जैसे खतरनाक प्राणि को घर मे पालने कि अनुमति देना।
कैलाश डॉ चड्डा का इकलौता पुत्र जिसके उसका शौक सांप पालना जन्म दिन पर बेटे कि मौत का कारण बनता है।
बूढ़े भगत ने किसी भी स्थिति परिस्थिति में सर्प दंश से अपनी जानकारी में किसी को मरने नही दिया लेकिन डॉ चड्डा के बेटे कि सर्प दंश से मृत्यु से वह खासा विचलित हो जाता है उसे डॉ चड्डा का व्यवहार भयानक चेहरा और अपने बेटे कि वेदना वियोग एव उसकी स्वंय कि मानवीय संवेदना के बीच भयंकर मूक द्वंद संघर्ष चलता है जिस पर भगत कि विनम्रता मानवता भारी पड़ती है ।
भगत कि बुढ़िया सोती रहती है और वह घण्टो पैदल चलते हुए हांफता हुआ डॉ चड्डा कि हवेली पहुंचता है और अपनी मंत्र कला से डॉ चड्डा के बेटे को सूरज की लाली निकलते ही जीवित कर देता है और चिलम भर तम्बाकू तक नही लेता है।
यह कहानी प्रासंगिक यक्ष प्रश्न खड़ा करती है ।
क्या मानवता करुणा दया कमजोर मनुष्यो के समाज से ही जन्म लेती है?
संभ्रांत सम्पन्न शक्तिशाली सिर्फ कठोर
दम्भ अमानवीय एव धृष्ट कुटिल व्यवहारिकता कि अवनी कि ही उपज है ।
इस कहानी का जीवंत पक्ष है अतीत कि घटना से वर्तमान को सार्थक संदेश।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।