‘कहानी पुरानी’
लिखूँ खत तुझे या कहूँ अपनी कहानी,
न था इसमें राजा न थी कोई रानी।
घरों में उजाले थे दुखों के न नाले थे,
भोला सा बचपन था दूर थी जवानी।
चेहरे पर चमक थी न था आँखों में पानी,
लिखूँ खत तुझे या कहूँ अपनी कहानी।
मैं घर की छोटी बच्ची थी उम्र थोड़ी कच्ची थी,
खेतों की पगडंडी थी न सड़कें तब पक्की थी।
अंगारों पे रोटी पकती थी माँ न कभी थकती थी,
फूस की छतें और हाथों से चलती चक्की थी।
शरारतों में नानी थी आदत से कुछ शैतानी,
लिखूँ खत तुझे या कहूँ अपनी कहानी।
© स्वरचित