कहानी– पंचायत
पंचायत
सामाजिक विषमता की गाथा आज की समस्या नहीं किन्तु प्राचीन काल से चली आ रही समस्या है । समाज में कर्जदार को हमेषा हीन दृष्टि से देखा गया है । पीढ़ियों से चला आ रहा कर्ज साहूकारों , जमींदारो की बही में सर्वाधिकार सुरक्षित रहा है । कानूनी दांव पेंच की दुरूहता और भय ने वादकरियों के हितों की हमेशा उपेक्षा की है ।पीढ़ी दर पीढ़ी हीन दृष्टि की शिकार ग्राम वासी , जन – जाति , बंधुआ, मजदूर और दास प्रथा की परिचायक हो गयी , कर्ज के बोझ तले दबे परिवार बढ़ते ब्याज दरों की मार से तिलमिला कर रह जाते , उनका मान- सम्मान सब गिरवी था आज भी वे सम्मान जनक जिंदगी जीने लायक परिस्थितियों मे नहीं हैं।
हम एक जमींदार परिवार से थे । बड़े –बड़े बाग बगीचों के मालिक थे । खेतिहर मजदूरों , भूमि हीन कृषकों को बटाई पर समय पर जोत हेतु खेत दे दिया करते थे, वे ही इन खेत –खलिहानों की देखभाल किया करते थे । फसल तैयार होने पर फसल का एक तिहाई हिस्सा इन बटाई दारों को दे दिया करते थे। यही उनकी आजीविका का साधन था । उन बागों मे से गुजरने वाले दलित जन जाति के लोग उल्टे पाँव चलते हुए मालिक के सम्मान मे अपने पैरो की छाप मिटाते हुए चलते थे । वैश्विक स्तर पर मानव का डीएनए समान होते हुए भी मनुष्यो के मान सम्मान मे यह फर्क अत्यंत दुखद था । हमारा आम का बहुत बड़ा बाग था।
हमारे गाँव मे मोंटू बाबू का एक शिक्षित परिवार रहता था। कायस्थ परिवार था । कायस्थ वैसे भी विचारों मे उदार , खुले दिल वाले ज़िंदादिल इंसान होते हैं, उक्त परिवार ने तर्कशास्त्र के माध्यम से रूढ़ियों का विरोध हमेशा किया है । आचरण के अनुसार मेल मिलाप व समाज मे सहयोग किया है समाज मे कायस्थ समाज की अड्दभूत प्रतिसस्था है इसी समुदाय का मिंटो बाबू प्रतिनिधित्व करते थे उनका जमीन जय्स्दाद से भर पुर द्संपन्न परिवार था वे अंग्रेज़ो के जमाने मे एकलोते ग्रेदुयाते थे कानून व आधुनिक विचारों की उनमे अद्भुत समझ थी । शिक्षित होने के नाते उनकी अपने शेखूपुर गाँव मे अच्छी साख थी। शेखूपुर पटना से चालीस किलोमीटर दूर पूर्व मे स्थित है।
मिंटोबाबू की माँ सख्त लहजे की महिला थी , उन्हे उनके फ़ैसलों पर टोकाटाकी कतई बर्दाश्त न थी, उनका निर्णय अंतिम व अटल होता था। अब वे साठ साल की हो चुकी थी परंतु नौकर-चाकर द्वारा उनकी सेवा मे जरा सी हीलाहवाली उन्हे बर्दाश्त न थी । मिंटो बाबू भी अपनी माँ का बहुत खयाल रखते थे , व सुबह उठ कर उनका चरणस्पर्श करना ना भूलते थे । माँ के आशीर्वाद से ही उनकी दिनचर्या प्रारम्भ होती थी । अब मिंटो बाबू चालीस बरस के हुए तब उन्हे पंचायत ने सरपंच चुन लिया । अब पंचायत के बाग , खेत खलिहान सब मिंटो बाबू की देख रेख मे आ गए । उन्होने अपने कर्तब्यको बखूबी निभाया ।
जेठ के महीने मे जब आम पाक कर तैयार होते है दोपहर मे सूरज आग बरसाता हुआ उन आमों मे निहित खटास को मीठा बनाता है । जब मनुष्य जेठ की दोपहरी मे उष्णता एवं लू से व्याकुलहो छांव की तलाश मे निकल पड़ता है तब बागों मे छांव व ठंडी हवा भी बड़ी मुश्किल से आँख –मिचौली खेलते हुए मिल जाती है ।
उस समय आम की मिठास और रखवालों की हरकार का अद्भुत संगम होता है , हरकारे आम खाने नहीं देते और मन आम की मिठास का ख्याल करके चंचल हो उठता है । दोनों विरोधाभास के बीच वही जीतता है जो भाग्यशाली होता है ।
हमारे शेखूपुर ग्राम मे एक दिन पंचायत बैठी । मिंटो बाबू उसके सरपंच चुने गए । पंचो को निर्णय करना था कि चमारन टोला के वासी आम बीनने कायथान टोला आते हैं , छूयाछूत की भावना और कर्ज के बोझ तले चमारन टोला वासियो के आवागमन से बाग दूषित होता है और हरकारे उन्हे दंडित भी नहीं कर पाते क्योंकि वो जन्मजात अछूत हैं ।
शूद्रों का कार्य केवल मालिक की सेवा करना है ना कि उसके संसाधनों का उपभोग करना । एक ठाकुर साहब ने तो यहाँ तक कह दिया कि शूद्रो की जगह पैर की जूती की तरह है ,इन्हे सर पर बैठाने पर पूरे समाज की बेज़्जती होगी , अत :इन्हे कड़ा से कड़ा दंड देकर इन का आवागमन प्रतिबंधित कर दिया जाए ।
तभी चमारन टोला से एक समझदार बुजुर्ग खड़े हुए , व जमीन पर बार –बार प्रणाम करके पंचो से कुछ कहने की अनुमति मांगी । पंचो की राय से बुजुर्ग ने कहना प्रारम्भ किया —
मालिक हम गरीब दीन –हीन सेवक हैं , आप लोंगों की दया पर निर्भर हैं हम सेवक किसी भी कार्यक्रम मे अहम किरदार निभाते हैं । इसके बावजूद भी हमारी बहन बेटियाँ सुरक्षित न हीं हैं , न हमारे बालको को शिक्षा का अधिकार है हम सब पर आरोप लगा कर सवर्ण जाति भेदभाव पूर्ण व्यवहार सेबच नहीं सकती । हमारा शोषण आपका न तो धर्म है न कर्तब्य । हमे कम से कम मनुष्य होने का हक तो मिलना चाहिए । बच्चों को शिक्षा व उचित संस्कार तो मिलना चाहिए । यहां तक की स्वास्थ्य समस्या मे भी हमारी अनदेखी की जाती है। ये स्वार्थ परक , रुढ़िवादी विचार समग्र समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते है । यदि सिर पर तेल फुलेल आवश्यक है तो पैरो को भी जूती आवश्यक होती है आप हमारी आवश्यकता को नकार नहीं सकतेहै । अशिक्षा ने हमे गरीब बनाया और आप लोगों के स्वार्थ ने दास बनाया । हमे भी खुली हवा मे श्वास लेने की आजादी है । इतना कह कर बुजुर्ग भावुक हो गए व बैठ गए ।
पंचायत मे सन्नाटा छाया हुआ था , चुप्पी तोड़ते हुए मिंटो बाबू ने अपना फैसला सुनाया । पंच के मुख से परमेश्वर बोलता है अत :हम सभी ईश्वर की संतान है , सभी को संविधान मे बराबरी का दर्जा हासिल है । स्वास्थ्य शिक्षा व भोजन की जनजाति उतनी ही हकदार है जितने सवर्ण । छुआछूत की परंपरा समाप्त होनी चाहिए व आज से ही हरिजनो को बराबरी का अधिकार दिया जाता है । उनकी गरीबी व कर्ज के लिए उन्हे सम्मान जनकजीवन जीने से वंचित नहीं किया जा सकता , पंच मेरी राय से सहमत हो तो फैसला करें ।
किसी भी पंच ने मिंटो बाबू के फैसले का विरोध नहीं किया । पंचायत मे दबे हुए स्वर मे विरोध हुआ किन्तु पंचो के समक्ष उनकी एक न चली और सर्वसम्मति से पंचायत का फैसला लागू किया गया ।
दिनांक -30-05-2018 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
सीतापुर