कहानी – तकदीर हंसीका की
कहानी – तकदीर हंसिका की पार्ट -01 स्क्रिप्ट-रौशन राय 9515651283/8591855531
तकदीर वो चीज हैं जिसका साथ दें तो धुल भी फुल बन जाता हैं और साथ न दें तो फुल भी धुल बन जाता हैं ना जाने फुल पर क्या क्या गुजर जाता हैं और अंत में वो अपने आप को……. आगे कहानी में पढ़ें
ऐ पहाड़ अपने आप पर न इतरा
मैं तकदीर हूं तेरे साथ, तो तु हैं खड़ा
मैं हूं तकदीर और मेरा हैं दो रुप
एक से देता खुशियां तमाम,दुसरे से देता दुःख
एक बहुत सुंदर परिवार जिनके नाम सोहरत की चर्चा चारों ओर निर्मल चन्द्रमा की किरणों की तरह फैला हुआ था परिवार में दो बेटी और एक बेटा जिसमें एक बेटी बड़ी और एक छोटी बेटा बीच का था। जब बच्चे छोटे था तब तक वो घर पर ही पढ़ाई करता और जब बड़े हुए तो उनका क्लास भी बड़ा होता गया और दोनों भाई बहन स्कूल से हाई स्कूल, और हाई स्कूल से काॅलेज जाते और समय पर घर वापस आ जाते बड़ी बेटी बिवाह करने योग्य हों गई तो छोटी काॅलेज जाने योग्य और बेटा को कुछ बड़ा बनाने के लिए सब सोच रहे थे बड़ी बेटी को उनके मेहनत और लगन से उन्हें सरकारी शिक्षिका का नौकरी हो गया बेटा को डाॅक्टर बनाने का सपना था क्योंकि उनके गांव से अस्पताल बहुत दुर शहर में था इसलिए बेटा को डाॅक्टर बनाके गांव में ही अस्पताल खोलके गांव बाले और आस परोस के लोगों का सेवा करने का विचार हुआ और समय पर बड़ी बेटी का विवाह कर दिया और बेटा को डाॅक्टरी पढ़ाई के लिए शहर भेजा गया और अब छोटी बेटी का दाखिला काॅलेज में हो गया जो अब लगभग जवानी में कदम रख चुकी थी और खुब सुंदर थी पर मन के चंचल थी दो साल काॅलेज की पढ़ाई करते वह उन्नीस साल की हो गई थी पन्द्रहवी में ग्रेजुएशन फैनल करने पर उन्हें उनके लक्ष्य पुछा जाता की तुम क्या करना या बनना चाहती हों अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था सब लोग हमेशा खुश रहते और परोपकार भी करते बड़ी बेटी अपना संसार बसा लिया उसके व्यवहार से उनके ससुराल वाले बहुत खुश रहते थे और हमेशा अपने बहु के बराई का फुल बांधते जिससे उनके मैके का सब लोग बहुत खुश रहते थे बेटा का डाॅक्टरी पढ़ाई का अंतिम साल चल रहा था और अब छोटी बेटी हंसिका को पढ़ाई में कम और प्यार मोहब्बत की बातें जादा अच्छा लगने लगा और उन्हें एक लड़का अपने झुठें प्यार के जाल में फांसता जा रहा था और हंसिका फंसती जा रही थी उस लड़के का झुठा प्यार अब हंसिका के शरीर पर नजर आने लगा तीन महीने के अंदर इसके शरीर का बदलाव देखकर उनके मां को शक ने चारों तरफ से घेर लिया और मां उनसे एक दिन पुछ बैठी तों मां पर हंसिका गर्म हो गई और उल्टा सीधा बता कर अपने कमरे में चली गई पर मां को उनके बातों पर विश्वास नहीं हुआ पर क्या करें ये सोचने लगी
मां ने फैसला किया कि घर परिवार और खानदान कि लाज मर्यादा को देखते हुए ये बात हंसिका के पिता जी को बता देना उचित होगा क्योंकि जो कुछ भी करेंगे वहीं करेंगे वर्णा हंसिका कहीं कोई उल्टा या गलत कदम उठा ली तों सारे परिवार जीते जी मर….. नहीं नहीं मैं इस लड़की के कारण अपने घर में सब का सर झुका नहीं देख सकती मैं हंसिका के पिता जी को अवश्य बता दुंगी ताकि सही समय पर उचित निर्णय ले सकें उनको जो करना होगा। वो करेंगे और वो रात को सब जन एक साथ खाना खाएं पर हंसिका नहीं आई जब हंसिका नहीं आई तों पिता जी पुछ बैठा की आज हंसिका नहीं है तों हंसिका की मां बोली आज उन्हें डांट लगाई हूं फिर पिता जी पुछ बैठें क्यों भाई तों मां बोली मैं सोते समय आपको सब बता दुंगी आप खाना खा लिजिए पिता जी बोले भाई हम तीन लोग अभी घर में हैं और साथ बैठकर खा भी नहीं सकते तुम रुको मैं अभी अपनी बेटी को बुला लाता हूं, मां बोली जाईए मैं रुकती हूं हंसिका के कमरे के पास जाकर पिता जी आवाज देने लगा हंसिका मेरी बेटी किवार खोल और चल खाना खाते हैं तरह तरह के प्रलोभन देने के बाद भी जब हंसिका किवार खोल कर बाहर नहीं आई तो पिता जी निराश हो कर खाना पर लौट आए और अपने पत्नी से बोले हंसिका इतनी जिद्दी तों नहीं थी एक कैसे ऐसे हो गई
और बेचारे बाप का बेटी नहीं खाई तो अपना भी भुख को मार दिया और थोड़ा बहुत खाया और पानी पी कर सोने चले गए जब बेटी और पति खाना नहीं खाया तो हंसिका की मां कैसे खा लेती बेचारी वो पानी पी कर अपने कमरे में सोने चली गई जहां पहले से हंसिका के बाबु जी पहुंचे हुए थे और हंसिका मां का इंतजार कर रहे थे हंसिका की मां घर का सब दरवाजा बंद कर दी और अपने पति के पास अपने रुम में पहुंच गई और लाईट डीम कर अपने पति के बगल में लेट गई तब तक हंसिका के बाबु जी को निंद आने लगा था तभी हंसिका के मां उनको हिला डुला कर जगा दिया तो हंसिका के बाबु जी बोले युऽऽऽऽ मुझे सोने दो तों फिर हंसिका के मां बोली जागिए ना मुझे आपसे हंसिका के बारे में बात करनी है तो वह जाग गए और बोले क्या बात है बताओ तो हंसिका के मां बोली की हमें हंसिका का चाल चलन ठीक नहीं लगता है की हंसिका के बाबु जी चौके और बोले क्या है तों हंसिका के मां बोली हां हमें हंसिका का चाल अच्छा नही लगता । क्या अच्छा नहीं लगता पहेलियां मत बुलाओ साफ साफ बोलों क्या बात है। तो हंसिका की मां बोली कैसे साफ साफ बोलूं वो बेटी हैं और आप बाप है तों हंसिका के बाबु जी समझ गए की बात गंभीर है तों वो बोलें हूं ऽऽऽऽ तो तुम क्या करती हो उसकी मां होकर तों वो बोली कल ही मुझे उसके शरीर का कुछ हिस्सा अजीब लगा जो कुंवारी लड़कियों का ऐसा नहीं होना चाहिए था जब मैं उन से पुछी तो वो तो पहले नाकर नुकर करती रही जब मैं उन से शक्ति से पुछा तों वो उल्टा मुझे डांटने लगी देखिए मुझे हंसिका का रवैया ठीक नही लग रहा है सो आप बाद में ये नही कहना की मैं आपको बताई नहीं हमारे हिसाब से एक बार हंसिका के मास्टर जी से बात करना चाहिए और वो आपका चर्चित में से हैं, हंसिका के पिता जी ठीक है हम तुम्हारे बात पर ध्यान रखेंगे पर तुम भी उन पर नजर रखो