Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2016 · 16 min read

कहानी— गुरू मन्त्र—- निर्मला कपिला

कहानी— गुरू मन्त्र—- निर्मला कपिला
मदन लाल ध्यान ने संध्या को टेलिवीजन के सामने बैठी देख रहें हैं । कितनी दुबली हो गई है । सारी उम्र अभावों में काट ली, कभी उफ तक नही की । वह तो जैसी बनी ही दूसरों के लिए थी । संयुक्त परिवार का बोझ ढोया, अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और शादियां की और फिर सभी अपने-अपने परिवारों में व्यस्त हो गए । मदन लाल जी और संध्या को जैसे सभी भूल गये । मदन लाल जी क्लर्क के पद से रिटायर हाने के बाद अभी तक एक साहूकार के यहां मुनिमी कर रहे हैं । बच्चों की शादियों पर लिया कर्ज अभी बाकी है । फिर भी वे दोनों खुश है । संध्या आजकल जब भी फुरस्त में होती है तो टेलिविजन के सामने बैठ जाती है , कोई धार्मिक चैनल लगाकर । साधु -संतों के प्रवचन सुनकर उसे भी गुरू धारण करने का भूत सवार हो गया है। मगर मदन लाल को पता नही क्यां इन साधु संन्तों से चिढ़ है । संध्या कई बार कह चुकी है कि चलो हरिद्वार चलते हैं । पड़ोस वाली बसन्ती भी कह रही थी कि स्वामी श्रद्वा राम जी बड़े पहूंचे हुये महात्मा है । उनका हरिद्वार में आश्रम है । वो उन्हें ही गुरू धारण करना चाहती हैं ।
संध्या ने प्रवचन सुनते-सुनते एक लग्बी सास भरी । तो मदन लाल जी की तन्द्रा टूटी । जाने क्यों उन्हें संध्या पर रहम सा आ रहा था । उन्होंने मन में ठान लिया कि चाहे कही से भी पैसे का जुगाड़ करना करें, मगर संध्या को हरिद्वार जरूर लेकर जाएंगे । आखिर उस बेचारी ने जीवन में चाहा ही क्या है । एक ही तो उसकी इच्छा है ।
‘‘संध्या तुम कह रही थी हरिद्वार जाने के लिए, क्या चलोगी‘क्या,?”
वह चौंक सी गई ——‘‘मेरी तकदीर में कहा जिन्दा जी जाना बदा है । अब एक ही बार जाना है हरिदुयार मेरी अस्थिया लेकर‘ । ‘‘ वह कुछ निराश् सी होकर बोली ।
‘‘ऐसा क्यों कहती हो ? मदन लाल के मन को ठेस सी लगी । अब बुढापे मे तो दोनो के केवल एक दूसरे का ही सहारा था।
‘‘सच ही तो कहती हूं । पैसे कहाँ से आऐंगे ? बच्चो की शादी का कर्ज तो अभी उतरा नही । बेटा भी कुछ नही भेजता । आज राशन वाला लाला भी आया था ।‘‘
‘‘ तुम चिन्ता मत करो । मैं सब कर लूंगा । बच्चों की तरफ से जी मैला क्यों करती हो । नइ -2 ग्‌ृहस्थी बसाने में क्या बचता होगा उनके पास । हम हरिद्वार जरूर जाएंगें ‘‘ कहते हुए वह बाहर निकल गया । मदन लाल भावुक होकर संध्या से कह तो बैठे, मगर अब उन्हें चिन्ता सता रही थी कि पैसे का इन्तजाम कैसे करें । मन में एकाएक विचार आया कि क्यों न अपना स्कूटर बेच दें । यूं भी बहुत पुराना हो गया है । हर तीसरे दिन ठीक करवाना पड़ता है । बाद में किश्तों पर एक साईर्कल ले लेंगे । वैसे भी साईकिल चलाने से सेहत ठीक रहती है –उसने अपने दिल को दोलासा दिया। हाँ, यह ठीक रहेगा । मन ही मन सोच कर इसी काम में जुट गए । चार-पाच दिन में ही उन्होने पाँच हजार में अपना स्कूटर बेच दिया । उन्हें स्कूटर बेचने का लेश मात्र भी दुख न था । बेशक उनका अपना मन हरिदार जाने का नही था मगर वह संध्या की एक मात्र इच्छा पूरी करना चाहतें थें ।
संध्या बड़ी खुश थी । उसे मन चाही मुराद मिल रही थी । उसने धूमधम से हरिदार जाने की तैयारी शुरू कर ली । अब गुरू मन्त्र लेना है तो गुरू जी के लिए गुरू दक्षिणा भी चाहिए, कपड़े, फल, मिठाई आदि कुल मिलाकर दो ढाई हजार का खर्च । चलो यह सौभाग्य कौन सा रोज रोज मिलता है । जिस प्रभू ने इतना कुछ दिया उसके नाम पर इतना सा खर्च हो भी गया तो क्या ।
हरिदार की धरती पर पाव रखते ही संध्या आत्म विभोर हो गई । मदन लाल जी गर्मी से वेहाल थे मगर संध्या का सारा ध्यान स्वामी जी पर ही टिका हुआ था । अब उसका जीवन सफल हो गया । गुरू मंत्र पाकर वो धन्य हो जायेगी। मदन लाल जी भी नास्तिक तो नही थे मगर धर्म के बारे में उनका नजरिया अलग था । वो संध्या की आस्था को ठेस पहूंचाना नही चाहते थे ।
दोपहर बारह बजे वो आश्रम पहूंचे । आश्रम के प्रांगण में बहुत से लोग वृक्षों की छांव में बैठे थें । मदन लाल जी रात भर ट्रेन के सफर में थक गए थे । पहले वह नहा धोकर फ्रेश् होना चाहते थे । आश्रम के प्रबन्धक से ठहरने की व्यवस्था पूछी । तीन सौ रूपये किराए से कम कोई कमरा नहीं था । चलो एक दिन की बात है यह सोचकर उन्होंने एक कमरा किराए पर ले लिया । थोड़ा आराम करके नहा धोकर तैयार हुए । 2 बजे के बाद गुरू दीक्षा का समय था ।——
मई महीने की कड़कती गर्मी से बेहाल लोग आश्रम के प्रांगण में स्वामी जी का इन्तजार कर रहें थें । दोपहर का प्रचंड रूप भी आज संध्या को भला लग रहा था । आज उसकी बरसों की आशा पूर्ण होने जा रही थी । संध्या बड़ी श्रदा से गुरू दक्षिणा का सामान संभाले मदन लाल के साथ आश्रम के प्रांगण में एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गई । वह ध्यान से आस पास के लोगों का निरीक्षण कर रही थी । लोग बड़े-2 उपहार फलों के टोकरे मिठाई मेवों के डिब्बे, कपडे और , बड़े-2 कंबलों के लिफाफे लिए बैठे थे । साथ ही एक परिवार की औरत दूसरी औरत को दिखा रही थी कि वो 50 ग्राम सोने की चेन, विदेशी घड़ी गुरू दक्षिणा के लिए लाई है । साथ ही बता रही थी कि यह तो कुछ भी नही लोग गुरू जी को लाखों रूपये चढ़ावा चढ़ाते है । सुनकर संध्या ने कुछ शर्मिदा सा हो लिफाफे को कसकर बगल में दबा लिया ताकि उसकी तुच्छ सी भेंट कोई देख न ले । उस गरीब के लिए तो यह भी बहुत बड़ा तोहफा था ।
मदन लाल जी का गर्मी से बहुत बुरा हाल था । पाँच बजने वाले थें मगर गुरू जी का कोई अता पता नही था । मदन लाल को गुस्सा भी आ रहा था । साधु सन्तों को लोगों की असुविधा, तकलीफ का कुछ तो एहसासा होना चाहिए । फिर सुध्या ने तो सुबह से कुछ खाया ही नही था । गुरू मन्त्र लेना है तो व्रत तो रखना ही था। । पवित्र काम के लिए शुद्धि आवश्यक होती है ।
‘‘देखो जी लोग गुरू दक्षिणा के लिए कितना कुछ ले कर आए है । मुझे तो अपनी छोटी सी भेंट पर शर्म आ रही है । क्योंं न कुछ रूपये और रख दें । ‘‘ संध्या तो बस एक ही बात सोच रही थी । मगर कह नहीं पा रही थी।

‘‘महाराज क्या आज गुरू जी के दर्शन होंगे ?‘ मदन लाल ने वहाँ एक आश्रम के सेवक से पूछा ‘हाँ- हाँ, बस आने वाले है ।‘‘ उसने जवाब दिया ।
“हमारा नंबर जल्दी लगवा दीजीए, दूर से आए हैं , थक भी गए है ।”
‘‘ठीक है, बैठो-2 ‘‘ उसका ध्यान मोटी आसामियों पर था ।
संध्या तो मगन थी मगर मदल लाल जी को झुंझलाहट हो रही था । वो सोच ही रहे थे कि बाहर कहीं जाकर कुछ खा पी लिया जाए तभी उन्होंने देखा कि 4-5 गाड़ियों का काफिला आश्रम के प्रांगण में आकर रूका । गाड़ियों में से गुरू जी तथा कुछ उनके शिश्य उतरे और गुरू जी के कमरे में चले गए । सँत जी ने बाहर बैठे, सुबह से इन्तजार करते भक्तों की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखा । लोग जय जय कार करते रहे । संध्या कितनी श्रद्धा से आँख बन्द कर हाथ जोड़ कर खड़ी थी । मदन लाल का मन क्षोभ से भर गया मगर बोले कुछ नहीं ।
सात बजे एक सेवक अन्दर से आया । उसने लोगों को बताया कि गुरू जी थक गए है । सुबह आठ बजे सबको गुरू मन्त्र मिलेगा । जो लोग यहाँ ठहरना चाहते है उनके लिए हाल में दरियां विछा दी है । सब को खाना भी मिल जाएगा वहीं भजन कीर्तन करें । संध्या बहुत खुश थी । वह सोच रही थी कि गुरू आश्रम मेंं सतसंग कीर्तन का आनन्द उठाएंगे, ऐसा सौभाग्य कहा रोज -2 मिलता है । मगर मदन लाल जी मन ही मन कुढ़ कर रह गए । – गुरू जी कौन सा हल जोत कर आए हैं जो थक गए है । ।महंगी ए- सी- गाड़ी में आए है। उन्हें क्यों ध्यान नही आया कि लोग सुबह से भूखे प्यासे कड़कती धूप में उनका इन्तजार कर रहे है । यह कैसे सन्त है जिन्हें अपने भक्तों की असुविधा, दुख दर्द का एहसास नही । उन्हेे तो पहले ही ऐसे साधु सन्तों पर विश्वास नही है जो वातानुकूल गाड़ियों में धूमते तथा महलनुमा वातानुकूल आश्रमों में आराम दायक जीवन जीते है । उनका मन हुआ कि यहा से भाग जाए । मगर वह संध्या के मन को चोट पहुचाना नही चाहते थे ।
दोनो ने कमरे में आकर कुछ आराम किया । फिर 8-30 बजे खाना खाकर वो सतसंग भवन में आकर बैठ गए जहाँ कीर्तन भजन चल रहा था । मदन लाल धीरे से ‘अभी आया‘ कहकर उठ गया । मन का विषाद भगाने के लिए वह खुली हवा में टहलना चाहते थे । वह आश्रम के पिछली तरफ बगीचे में निकल गया । सोचने लगा कि उनका क्षोभ अनुचित तो नही ? गुरू जी के मन का क्रोध उन्हें पाप का भागी तो नही बना रहा ———— इन्ही सोचों में चलते हुए उसकी नजर आश्रम के एक बड़े कमरे के दरवाजे पर पड़ी । शायद वह गुरू जी के कमरे को पिछला दरवाजा था । दरवाजे पर गुरू जी का एक सेवक् 2-3 परिवारों के साथ खड़ा था । तभी अन्दर से एक आदमी तथा एक औरत बाहर निकले । सेवक ने तभी एक और परिवार को अन्दर भेज दिया । अब मदन लाल जी की समझ में सारा माजरा आ गया । मालदार लोगों के लिए यह चोर दरवाजा था , जहा से गुरू जी तक चाँदी की चाबी से पहूंचा जा सकता था । यह धर्म का कैसा रूप है ? यह साधु-सन्त है या व्यवसाई? उन्हें नही चाहिए ऐसे संतों का गुरूमन्त्र ! वह वापिस जाना चाहते थे मगर संध्या की आस्था का तोड़ उनके पास नही था । वह अनमने से संध्या के पास जाकर बैठ गए ।
कीर्तन के बाद कमरे में आकर उन्होंने संध्या को सब कुछ बताया मगर वह तो अपनी ही रौ में थी , ‘‘ आप भी बस जरा-2 सी बात में दोष ढूंढने लगते है । क्या सतसंग में सुना नही छोटे महात्मा जी क्या कह रहे थे ? हमें दूसरों के दोष ढूंढने से पहले अपने दोष देखने चाहिए । मगर तुम्हें तो साधु सन्तों पर विवास ही नही रहा । संध्या की आस्था के आगे उसके तर्क का सवाल ही नही उठता था । वह चुपचाप करवट लेकर सो गया ।
सुबह पाँच बजे उठे नहा धोकर तैयार हुए और छ: बजे आरती में भाग लेने पहूंच गए । यहाँ भी गुरू जी के शिश्य ही आरती कर रहे थे । संध्या ने व्रत रखा था । वह शुद मुख से मंत्र लेना चाहती थी । वह आठ बजे ही प्रांगण में जाकर बैठ गई और आस पास के लोगों से बातचीत द्वारा गुरू जी के बारे में अपना ज्ञान बांटने लगी । मदन लाल जी 9 बजे बाहर से नाश्ता करके उसके पास आकर बैठ गए । आठ बजे की बजाए गुरू जी 10 बजे आए और अपने आसन पर विराजमान हो गए । आस पास उनके सेवक खड़े थे और कुछ सेवक लोगों को कतार में आने का आग्रह कर रहे थे ।
गुरू जी ने पहले गुरू-शिष्य परंपरा की व्याख्या जोरदार शब्दों में की । लोगों को मोह माया त्यागने का उपदेश दिया फिर बारी बारी एक-2 परिवार को बुलाने लगे । उन्हें धीरे से नाम देते फिर आाीर्वाद देते । लोगों की दान दक्षिणा लेकर ाष्यों को सपुर्द कर देते । जिनकी दान दक्षिणा अक्ष्छी होती उन्हें फल मिठाई को प्रसाद अधिक मिल जाता । उनको हंस कर आशीर्वाद देते, कुछ बातें भी करते । मदन लाल ने कई बार उठने की चेष्टा की मगरसेवक उन्हें हर बार बिठा देता । वह मालदार असामी को ताड़कार पहले भेज देता । मदन लाल मन मार कर बैठ जाते । उन्हें चिन्ता थी कि अगर दो बजे तक फारिग न हुए तो आज का दिन भी यहीं रहना पड़ेगा । चार पाच सौ रूपये और खर्च हो जाएगा ।
एक बजे तक बीस पचीस लोग ही गुरू मंत्र ले पाए थे । उनमें से कुछ पुराने भक्त भी थे । एक मास में केवल 3 दिन ही होते थे गुरू म्रत्र पाने के लिए । एक बजे गुरू जी उठ गए । भोजन का समय हो गया था । लोग मायूस होकर अपने’-2 कमरों में लौट गए । जिनके पास कमरे नहीं थे वो वृक्षों के नीचे बैठ गए । कई लोग तीसरी चौथी बार आए थें अभी उनहें गुरू मंत्र नही मिला था । चार बजे फिर गुरू जी ने मंत्र देना था । लोग इन्तजार कर रहें थे । पाँच बजे गंरू जी के सेवक ने बड़े गर्व से लोगों को बताया कि अभी थोड़ी देर में एक मंत्री जी गुरू जी के दर्शन करने आने वाले है । इसलिए कल 10 बजे गुरू जी आपसे मिलेंगे । तभी चमचमाती कारों का काफिला प्रांगण में आकर रूका । मंत्री जी व उनके साथ आए लोग सीधे गुरू जी के कमरे में चले गए । चाय पानी के दौर के बाद गुरू जी मंत्री जी को आश्रम का दौरा करवाने निकले । इस काम में 7 बज गए । मंत्री जी आश्रम के लिए 50 हजार का चैक भी दे गए थे ।
मदन लाल जी बहुत परेशान हो गए थे । आज कमरे का किराया भी पड़ गया । अगर कल भी समय रहते काम न हुआ तो एक दिन का किराया और पड़ जायेगा । उनके पास एक हजार रू बचा था । 280 / रू जाने का किराया भी लग जायेगा । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। मदन लाल जी कुछ सोच कर उठे और बाहर चल दिए । आज चाहे उन्हें कुछ भी करना पडे वह करेंगे । जब गंरू जी का काम चोर दरवाजे से चलता है तो वो भी थोड़ा झूठ बोलकर काम निकलवा लेंगे । सोचते हुए वो पिछले दरवाजे की तरफ गए तो उन्हें गुरू जी का एक सेवक् मिल गया । पिछले दरवाजे पर अभी भी कुछ लोग अन्दर आ- जा रहें थे । मदन लाल जी आगे लपके ‘महाराज, देखिए मैं एक अखबार का प्रतिनिधि हू । मेरे पास छुटटी नही है अगर इन लोगों के साथ हमें भी गुरू जी के साथ मिलवा दें तो बड़ी कृपा होगी । अखबार में इस आश्रम के बारे में जो कहें लिख दूगा । नही तो निराश होकर जाना पड़ेगा ।” मदन लाल जी ने झूठ का सहारा लिया।

‘‘ठीक है आप 15-20 मिनट बाद आना, मैं कुछ करता हूं ‘‘ वह कुछ सतर्क सा होकर बोला ।

मदन लाल जी मन ही मन खुश हो गए । उनका तीर ठिकाने पर लगा था । वह जल्दी से अपने कमरे कें गए और संध्या को साथ लेकर उसी जगह वापिस आ गए । संध्या के पांव धरती पर नहीं पड़ रहे थे । इस समय वह अपने को मंत्री जी से कम नहीं समझ रही थी । उसके चेहरे की गर्वोन्नति देख मदन लाल जी मन ही मन उसकी सादगी पर मुरूकराए । वो सोच रही थी कि यह उसकी भक्ति और आस्था की ही चमत्कार है जो गुरू जी ने इस समय उन पर कृपा की है । उसने मदन लाल की तरफ देखा ‘‘ देखा गुरू जी की महानता ।‘‘ वो हस पड़े ।

पाच मिनट में ही वो सेवक उन्हें गुरू जी के कमरे में ले गया । संध्या ने दुआर पर नाक रगड़ कर माथा टेका । जैसे ही उसने अंदर कदम रखा उसे लगा वह स्वर्ग के किसी महल में आ गई है । ठंडी हवा के झोंके से वह आत्म विभोर हो गई । उसने पहली बार वातानुकूल कमरे को देखा था । उसके पाँव किसी नर्म चीज में धंसे जा रहे थे । उसने नीचे देखा, सुन्दर रंगीन गलीचा बिछा था, इतना सुन्दर गलीचा उसने जीवन में पहली बार देखा था । कमरे में तीन तरफ बड़े- 2 गददेदार सोफे थे । छत पर बड़ा सा खूबसूरत फानूस लटक रहा था । कमरे की सजावट देख कर लग रहा था कि वह किसी राजा के राजमहल का कमरा था । सामने गुरू जी का भव्य आसन था । और कमरे मे दो जवान सुन्दर परिचातिकायें सफेद साडियों मे खडी थीं।वि आगे बढे और दोनों ने गुरू जी के चरणों में माथा टेका । संध्या ने गुरू दक्षिणा भेंट की । गुरू जी ने आशीर्वाद दिया । वों दोनों आसन के सामने गलीचे पर बैठ गए ।

‘‘ देखो बच्चा, हमें किसी चीज का लोभ नही । मगर भक्तों की श्रद्धा का हमें सम्मान करना पड़ता है । उनकी आत्म संतुष्टी में ही हमारी खुशी है । बहुत दूर-2 से भक्त आते है । विदेशों में भी हमारे बहुत शिष्य है । यह इतना बड़ा आश्रम भक्तों की श्रदा और दान से ही बना है ।‘‘ मदन ला जी मन ही मन समझ रहें थे कि गुरू जी उन्हें यह सब क्यों बता रहे है ।

‘‘स्वामी जी मेरी पत्नि टेलिविजन पर आपका प्रवचन सुनती रहती है । इसकी बड़ी इच्छा थी कि आपसे गुरू मंत्र ले । ‘‘ मदन लाल जी अपना काम जलदी करवाना चाहते थे । उन्हें डर था कि कहीं गुरु जी ने अखवार के बारे में पूछ लिया तो संध्या के सामने भेद खुल जाएगा ।

‘‘बेटी तुम राम-2 का जप करा करो यही तुम्हारा गुरू मंत्र है ।‘‘संध्या ने सिर झुकाया ‘‘पर गुरू जी मुझे पूजा -विधि बिधान नही आता । भगवान को कैसे पाया जा सकता है ? ‘‘ संध्या की बात पूरी नही हुई थी कि गुरु जी के टेलिफोन की घंटी बज गई । गुरू जी बात करते-2 उठ गए । पता नही किससे फोन पर बात हो रही थी कि। उन्हें गुस्सा आ गया और वो बात करते-2 दूसरे कमरे में चले गए —– उन दोनों के कान में इतनी बात पड़ी —— “उस साले की इतली हिम्मत ? मैं मंत्री जी से बात करता हू ——‘‘

मदन लाल और संध्या का मन कसैला सा हो गया । आधे धंटे बाद उनके एक सेवक ने आकर बताया कि अब गुरू जी नही आ पाएगे । उनका मूड ठीक नही है, कोई समस्या आ गई है ।वो दोनो निराश से बाहर आ गए ।

दोनो के मन मे एक ही सवाल था क्या संतों का मूड भी खराब होता है? अगर ये लोग अपने मन पर काबू नहीं पा सकते तो लोगों को क्या शिक्षा देते होंगे। क्या इन लोगों को भी क्रोध आता है? क्या ये लोग भी अपशब्द बोलते हैं — ये लोग हम से अधिक भौतिक सुखों भोगते हैं। स्वामी जी के कमरे मे कितना बडा एल सी डी लगा था।—– ऐसे कई प्रश्न—-

‘‘संध्या ! आने से पहले तुम्हारे मन में जो स्वामी जी की तस्वीर थी क्या अब भी वैसी ही है ?”

‘‘पता नही जी, मैंने तो सोचा भी नहीं था कि साधु संत इतने वैभव-ऐश्वर्य में रहते है । खैर ! वो गुरू जी हैं, अन्तर्यामी है उन्होने मेरी सच्ची आस्था को समझा तभी तो इतने लोगों को छोड़कर हम पर कृपा की ‘‘ संध्या अपनी आस्था को टूटने नहीं देना चाहती थी ।

‘‘तुम जैसे भोले लोग ही तो इनके वैभव का राज है । तुम जानती हो कि हम लोगों को क्यों पहले बुलाया ?”

‘‘क्यों?”, संध्या हैरानी से मदन लाल को देख रही थी । मदन लाल ने उसे नूरी बात बताई कि किस तरह उन्होंने पत्रकार बनकर सेवक को पटाया था । क्योंकि उनके पास पैसे भी कम पड़ रहें थे । उधर मुनीम जी उनकी नौकरी से छुट्‌टी न कर दें ।‘‘

” पता नहीं जी यह सब क्या है ?” क्या सच? मैं तो समझी गुरू जी अन्तर्यामी हैं–वो मेरी आस्था को जान गये हैं इस लिये जल्दी बुलाया है?संध्या ने मदनला की ओरे देखा।

‘‘फिर तुमने देखा फोन पर बात करने का ढंग ? गाली देकर बात करना फिर मंत्री जी की धोंस दिखाना, क्रोध में आना क्या यह साधु संतों का काम है?”अगर साधू सन्तो मे धैर्य न हो तो वो भक्तों को क्या शिक्षा देंगे?क्या ये सब साधू संतों का आचरण है?: मदन लाल सन्ध्या की मृगत्रिष्णा मे सेंध लगाने की कोशिश कर रहे थे।

“फिर देखो साधू सन्तों का रहन सहन क्या इतना भैववशाली होना चाहिये?वातानुकूल महलनुमां कमरे,बडी बडी ए सी गाडियाँ अमीर गरीब मे भेद भाव। तुम ही बताओ क्या ये हम जैसे भोले भाले लोगों को गुमराह नहीं कर रहे?हमे कहते हैं भौतिक वस्तुयों से परहेज करो धन से प्यार न करो,और हम से धन ले कर उसका उपयोग अपने सुख भैवव के लिये कर रहे हैं।” मदन लाल ने एक और कील ठोंकी।

“:देखो जी मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।फिर भी सब कुछ ठीक ठाक सा नहीं लगा।”

“संध्या आज वो साधू सन्त नहीं रहे जो लोगों को धर्म का मार्ग बताते थे। खुद झोंपडिओं मे रहकर लोगों को सुख त्याग करने का उदहारण पेश करते थे। आज धर्म के नाम पर केवल व्यापार हो रहा है। किसकी दुकान कितनी उँची है ये भक्त तय करते हैं। कुकरमुत्तोंकी तरह उगते ये आश्रम असल मे दुकानदारी है व्यापार है चोर बाज़ारी है जहाँ अपराधी लोग शरण पाते हैं और फिर कितना खून खराबा इन लोगों दुआरा करवाया जाता है लोगों की भावनायों को भडका कर राजनेताओं को लाभ पहुँचाना आदि काम भी यही लोग करते हैं। मैं ये नहीं कहता कि सब ऐसे होंगे अगर कोई अच्छा होगा भी तो लाखों मे एक जो सामने नहीं आते। लाखों रुपये खरच कर ये टी वी पर अपना प्रोग्राम दिखाते हैं जहाँ से तुम जैसे मूर्ख इन के साथ जुड जाते हैं। अगर इन्हें धर्म का प्रचार करना है तो गली गली घूम कर धर्मस्थानों पर जा कर करें वहाँ जो रूखा सूखा मिले उस खा कर आगे च्लें मगर लालच वैभव और मुफ्त का माल छकने के लिये ये बाबा बन जाते हैं।” मदन लाल जी अपना काम कर चुके थे।

चलो इसी बहाने तुम ने कुछ क्षण ही सही वातानुकूल कमरे.गद्देदार कालीन का आनन्द तो उठा लिया ? साधु-सन्तों का मायाजाल भी देख लिया, अपना मायाजाल तोड कर ।ऎसे साधुयों के काराण ही तो लोग धर्म विमुख हो रहे हैं।” मदन लाल को लगा कि अब वो सन्धया की मृग त्रिष्णा को भेद चुके हैं।

सन्ध्या सब समझ गयी थी।वो मदन लाल से आँख नहीं मिला पा रही थी।उसकी आस्था ऐसे सन्तों से टूट चुकी थी।उसे आज मदन लाल जी इन सन्तों से महान नज़र आ रहे थे जिन्हों ने अपना स्कूटर बेच कर उसका मन रखने के लिये अपने सुख का त्याग किया था।अब उन्हें रोज़ पैदल ही दफ्तर जाना पडेगा। सच्चा मन्त्र तो ईश्वर की बताई राह पर चलना है। मगर मैं साधन को साध्य समझ कर भटक गयी थी

प्रेम भाव और दूसरे की खुशी के लिये अपने सुख का त्याग करना—ओह्! यही तो है वो मन्त्र! इसे मैं पहले क्यों नहीं समझ पाई? आज इस आत्मबोध को सन्ध्या ने धारण कर लिया था -गुरू-मन्त्र की तरह ।

समाप्त

Language: Hindi
1 Comment · 706 Views

You may also like these posts

!! फूलों की व्यथा !!
!! फूलों की व्यथा !!
Chunnu Lal Gupta
ग़ज़ल _ दिल मचलता रहा है धड़कन से !
ग़ज़ल _ दिल मचलता रहा है धड़कन से !
Neelofar Khan
वन को मत काटो
वन को मत काटो
Buddha Prakash
तलाश
तलाश
Dileep Shrivastava
..
..
*प्रणय*
बहू चाहिए पर बेटी नहीं क्यों?
बहू चाहिए पर बेटी नहीं क्यों?
Rekha khichi
कुछ लोग कहते है की चलो मामला रफा दफ़ा हुआ।
कुछ लोग कहते है की चलो मामला रफा दफ़ा हुआ।
Ashwini sharma
*जुलूस की तैयारी (छोटी कहानी)*
*जुलूस की तैयारी (छोटी कहानी)*
Ravi Prakash
We will walk the path , English translation of my poem
We will walk the path , English translation of my poem
Mohan Pandey
ना जाने कब समझेगा दुनिया को ये बच्चा
ना जाने कब समझेगा दुनिया को ये बच्चा
Dr. Mohit Gupta
"खरगोश"
Dr. Kishan tandon kranti
जब आवश्यकता होती है,
जब आवश्यकता होती है,
नेताम आर सी
#Rahul_gandhi
#Rahul_gandhi
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
संस्कारों की रिक्तता
संस्कारों की रिक्तता
पूर्वार्थ
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
ऐसा बेजान था रिश्ता कि साँस लेता रहा
Shweta Soni
3663.💐 *पूर्णिका* 💐
3663.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Thunderbolt
Thunderbolt
Pooja Singh
*हमारा संविधान*
*हमारा संविधान*
Dushyant Kumar
मेरा हृदय मेरी डायरी
मेरा हृदय मेरी डायरी
Er.Navaneet R Shandily
लौट कर न आएगा
लौट कर न आएगा
Dr fauzia Naseem shad
बाल कविता शेर को मिलते बब्बर शेर
बाल कविता शेर को मिलते बब्बर शेर
vivek saxena
हौसला जिद पर अड़ा है
हौसला जिद पर अड़ा है
डॉ. दीपक बवेजा
My cat
My cat
Otteri Selvakumar
कठिनाईयां देखते ही डर जाना और इससे उबरने के लिए कोई प्रयत्न
कठिनाईयां देखते ही डर जाना और इससे उबरने के लिए कोई प्रयत्न
Paras Nath Jha
मोहब्बत मुख़्तसर भी हो तो
मोहब्बत मुख़्तसर भी हो तो
इशरत हिदायत ख़ान
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
$úDhÁ MãÚ₹Yá
Perfection, a word which cannot be described within the boun
Perfection, a word which cannot be described within the boun
Chaahat
किसी एक के पीछे भागना यूं मुनासिब नहीं
किसी एक के पीछे भागना यूं मुनासिब नहीं
Dushyant Kumar Patel
भूल
भूल
Khajan Singh Nain
"जिंदगी की बात अब जिंदगी कर रही"
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Loading...