कहानी….काश हम बच्चे होते
===बाल कहानी==
काश हम बच्चे होते
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सारे मौहल्ले में आज बच्चों का हुड़दंग पूरे जोर पर था। जिधर देखो कूदते- फांदते, आवाज करते बच्चे ही नजर आते। जो शांतिप्रिय या एकांत प्रिय बच्चे थे वह या तो घर में ही कैरम खेल रहे थे या टीवी पर कार्टून फिल्म देख रहे थे,कुछ बच्चे घर की छत पर रंग- बिरंगी पतंग उड़ा रहे थे तो कुछ कागज़ के जहाज बनाकर उड़ा रहे थे। क्योंकि आज रविवार का दिन था।
घर के दरवाजे पर खड़े होकर कुछ औरतें अपने बच्चों को आवाज भी लगा रहीं थीं, मगर शैतान बच्चे उस आवाज को अनसुना करके खेल में मस्त हो रहे थे। आज कॉलोनी के सारे पार्क- गली बच्चों से ही तो भरे हुए नजर आ रहे थे।
रवि अपने मां बाप की इकलौती संतान था वह भी आज दूसरे बच्चों की तरह मस्त था। रवि के पापा रामगोपाल और मां पुष्पा दोनों ही रवि को बहुत प्यार करते थे एक खरोच लगने पर ही डॉक्टर को बुला लेते कभी बुखार खांसी हो जाए तो पूछो मत।
पड़ोस में रह रहे बिज्जू के तीन लड़के थे उन्हीं में से दूसरे नंबर के लड़के मोनू के द्वारा रवि को चोट लग गई । हुआ यूं की जैसे आपस में दो बच्चे लुका- छुपी खेल रहे थे तो मोनू के हाथों से रवि को तेज धक्का लग जाने के कारण वह गिर गया और उसके घुटने छिल गए।
कुछ तो रवि को दर्द था ही कुछ वह अधिक लाडला होने के कारण भी ज्यादा रो रहा था। रवि के चारों ओर बच्चों का झुंड सा लग गया, कुछ उसे चुप करने में लग रहे थे तो कुछ तालियां बजा-बजा कर हंस रहे थे ।मोनू के छोटे भाई सोनू ने यह बात रामगोपाल से जाकर कह दी ,क्योंकि कुछ देर पहले मोनू ने अकेले ही चॉकलेट जो खाली थी।
रवि की चोट के विषय में सुनकर रामगोपाल और पुष्पा दोनों ही घबरा गए, पुष्पा ने पार्क में जाकर रवि को अपने सीने से लगा लिया और मोनू के कान के इर्द-गिर्द तीन-चार चाटे जड़ दिए। फिर क्या था मोनू भी रोता हुआ अपने घर पहुंच गया, मोनू की मां सरूपी भी किसी अख्खड दिमाग से कम नहीं थी। वह भी पार्क गई और उल्टी-सीधी गालियां देने लगी। अरे हटो बच्चों के ऊपर लड़ने लगी हो रामगोपाल ने कहा ।क्योंकि वह लड़ाई से बहुत डरते थे इतना ही नहीं एक बार किसी बच्चे ने उनके ऊपर रबर का सांप फेंक दिया तो बेचारे बुखार में कई दिनों तक तपते रहे।
अरे दोनों ने मिलकर मेरे बालक को पीटा और अब मुझे भी गालियां दे रहे हैं सरूपी बुरी तरह चिल्लाने लगी ।सरूपी की आवाज सुनकर बिज्जू भी आ गया और उसने बिना कुछ पूछे- गछे ही रामगोपाल का गिरेबान पकड़ कर हिला दिया। फिर तो दोनों ही और से अच्छी खासी बॉक्सिंग शुरू होने लगी।
पड़ोस के कुछ समझदार लोगों ने उन्हें अलग- अलग कर दिया ,मगर दोनों ही और से अभी भी एक-दूसरे को गालियां देने का क्रम जारी था । फिर क्या था जब इतने से काम नहीं चला तो बिज्जू ने पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट लिखा दी।
जब इंस्पेक्टर भोला ने आकर पूछ-ताछ की तो कारण सामने आया कि बच्चों की लड़ाई होने कारण यह सब बखेरा हुआ है ।अभी इंस्पेक्टर भोला दोनों तरफ की लड़ाई का कारण जानने की कोशिश कर ही रहे थे कि तभी रवि और मोनू दोनों की ओर एक आदमी ने अंगुली उठाते हुए बताया कि वो रहे दोनों बच्चे जिनके ऊपर यह झगड़ा हुआ है।
इंस्पेक्टर भोला को अक्समात ही हंसी आ गई, क्योंकि दोनों बच्चे रेत का घर बनाकर एक दूसरे के गालो पर मिट्टी लगा रहे थे। वह दोनों एक साथ ऐसे खेल रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।
तुम्हें शर्म नहीं आती या शर्म है ही नहीं इंस्पेक्टर भोला ने शक्ति से कहा और आगे कहने लगे अरे तुमसे अच्छे तो वह बच्चे हैं जिनके ऊपर तुम लड़ रहे हो।
जरा देखो उन बच्चों को जो सब कुछ भूल कर अभी भी एक साथ खेल रहे हैं, जब तुम खुद भाईचारे से नहीं रह सकते तो अपने बच्चों को भाईचारे का पाठ क्या पढ़ाओगे।
तुम हल्के से विवाद को लेकर थाने तक पहुंच गए और यह चोट खा कर उसे भूल कर अभी भी अनजान बन खेल रहे हैं। तुम क्या इन्हें भाईचारे-और इंसानियत का पाठ पढ़ाओगे ये तुम्हें उल्टा सिखा देंगे, कुछ सीखो इन बच्चों से।
इंस्पेक्टर भोला की बातों को सभी लोग मूक दर्शक बन सुन रहे थे और रवि- मोनू दोनों अभी भी रेत के घरों को बना -बिगाड रहे थे। तभी दोनों पक्षों की ओर से धीमी सी एक मिली-जुली आवाज आयी—- काश हम भी बच्चे होते।।
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कहानी के मूल लेखक ……
डॉ. नरेश कुमार “सागर”