कहानी – आत्मसम्मान)
कहानी लिखना चाहते हैं उनके लिये विषय – आत्मसम्मान)
साहिब योगेश ने तभी ज़ोर से आवाज़ लगाई, “नरेश ज़रा एक गिलास पानी तो पिलाओ।”
नरेश ख्यालों में खोया परेशान हड़बड़ा कर साहिब को पानी पकड़ाता है| साहिब उससे सदा खुश रहते और हमदर्दी करते थे| वो ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था| वो भी साहिब को देख हाथ उठा लम्बी फोजियों जैसी सलाम करता था| उसने कुछ देर आर्मी की रसोई में काम किया था पर किसी कारणवश नौकरी छोड़ घर वापिस आ गया था| योगेश बोले, “आज वो चहक और जोश नहीं दिख रहा कोई परेशानी है भाई| क्या बात हंसमुख नरेश तुम चुपचाप हो, कोई मजबूरी में हो या तबियत ठीक नहीं है| आज कुछ सुस्त से हो| कोई परेशानी हो तो बताओ?” उसने कहा, “जी कुछ नहीं बस सब ठीक है, आपको बैसा ही महसूस हुआ।”
इतने में योगेश की पत्नी नैना, जो दरियादिल, पूजापाठी और दानी सुभाव की थी, बोली, “बात तो कोई जरुर है, इतना चेहरा उतरा तो नहीं होता| बोलो क्या परेशानी हैं शायद हम मदद कर सकें|” नरेश दोनों हाथ जोड़ छुपाने की कोशिश करता रहा| पिछले वीस साल से उस घर में काम कर रहा था| उसके मालिक और मालकिन उसके मन के भाव को समझते थे| आखिर मैडम बोली, “तेरी पत्नी को बच्चा होने वाला है क्या वो ठीक है| बस एक महीने में तू पिता बन जाएगा| पिछले ही साल तो हमने तेरा विवाह आफिस के चपड़ासी नौकर रामलाल की बेटी से करवाया था, अब चलो छोटा ललना भी घर में खेलेगा|” नरेश हलकी सी मुस्कान लेकर धीरे से मुस्काता आंसू पोंछने लगा| साहिब ने पूछ लिया, ”क्या हो गया बताओ अपनी परेशानी क्या पैसा चाहिए? जब तक बोलोंगे नहीं हमको कैसे पता चलेगा|”
आखिर नरेश ने चुप्पी तोड़ी और बोला, “रात पत्नी की तबियत खराब हो गई और उसको दर्द हो रही थी, समय से पहले बड़े आप्रेशन से बच्चा होगा और अस्पताल वाले तीस हजार रूपये मांग रहे हैं| दस हज़ार रूपए तो भाई कहता दे दूंगा बाकी का इंतजाम कर रहा हूँ|” नरेश रोने लगा और बोला, “पत्नी और बच्चा कमज़ोर हैं खतरा तो है| अब तो आपका और उस उपर वाले का ही सहारा है|” नरेश काम में तो लग गया पर उसका मन काम में नहीं लगता मालूम हो रहा था| नैना ने अपने पति से कहा, “ये पैसों के लिए ही लगता आया, हम जानते स्वाभिमानी और असूलों वाला इंसान है| कहीं और भी मांगने गया होगा|” पति योगेश बोले, ”बेचारा कैसे करेगा, गरीबों को ऐसा समय में आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं|” तभी नौकर नरेश खाना मेज़ पर लगाने को पूछने आया| नैना ने कहा, ”खाना तो मैं लगा लुंगी तू अस्पताल पत्नी के पास जा|” नौकर पैर मलते सोचने लग गया और बोला, ”मालकिन सारा काम हो गया, अब कुछ दिन नहीं आऊँगा आप को मुश्किल होगी|” हाथ जोड़ पैर हाथ लगा जाने लगा तभी साहिब योगेश ने आवाज़ लगाई, ”डाक्टर का नाम पूछा, बोले मैं फ़ोन कर दूंगा, तूं चिंता न कर ये ले बीस हजार रूपये अगर कमी रही तो मांग लेना|” पत्नी ने पति को कहा, ”भाई पता नहीं इंतजाम कर पाए या नहीं दस हजार और दे दो|” नरेश पैसे लेने से इनकार करने लगा पैरों में गिर गिडगिडाया, “मेरे मालिक तुम ही मेरे भगवान हो, मैं इतना पैसा कैसे वापिस कर सकूंगा|” नरेश सोच रहा था कि गरीबी एक ऐसी चीज है जो इन्सान के जीवन में कभी न कभी मुश्किल जरुर खड़ी करती है लेकिन अगर गरीब होते हुए भी हमें अपने आत्मसम्मान की भावना को कभी भी कम नही होने देना चाहिए क्योंकि आत्मसम्मान ही एक ऐसी चीज है जो कि इन्सान के इन्सान होने का अहसास कराती है| मैं तो खुद को लाचार और बेकार सा परिवार के लिए महसूस कर रहा हूँ|”
नरेश मालिक से बोला, “ये तो आप बहुत बड़ा उपकार कर रहे हो|” साहिब बोले, “सुनो उपकार नहीं तुम तीन साल बिना वेतन लिए हमारा घर का काम करना और हमारा ध्यान रखना| समझो तुम्हारे पैसों की वसूली हो जायेंगी| अब परिवार को तेरी जरूरत है, जाओ और सम्भालो और जरूरत हुई तो हम भी पहुंच जायेंगे| नरेश, हमारे बच्चे दूर है तूं ही बीस साल से सेवा कर रहा है| तुम तो परिवार के सदस्य और हमारे खास आदमी हो, हम सदा तेरे साथ हैं| इंसानियत ही इंसान के दुःख में काम आने में होती है|” नरेश का चेहरा मालिक और मालकिन के मुश्किल समय में साथ देने से सदा अपनापन लेकर आत्म-सम्मान बना अपनापन देखता रहा| इस प्रकार नरेश आत्म-सम्मान से अपनी पत्नी और बच्ची को ठीकठाक सुरक्षित रख आत्मसमान से मानवता का सबक सीख चूका था|
स्वरचित -रेखा मोहन .पंजाब