कहां से और कैसे आएगा सुशासन ?
कैसा है हमारे देश का सरकारी तंत्र ,
जमादार से लेकर बड़े अफसर तक ,
सब है अकर्मण्य और कामचोर ।
तनख्वाह लेने के लिए सबसे आगे,
हर साल तनख्वाह में बढ़ोतरी करवाए ,
मगर टेबल के नीचे से भी पाए मुनाफा ,
यह रिश्वतखोर ।
ना सरकार का चले इनपर जोर ,
और जनता बेचारी है बड़ी कमज़ोर ,
काम निकलवाने के लिए लगवाएं खूब चक्कर,
कुछ मत कहना फिर भी इनसे ,
हैं यह बड़े मुंह ज़ोर ।
इनकी कुव्यवस्था का हाल कुछ न पूछो ,
सारे शहर में जगह जगह कचरों का ढेर ।
टूटी फूटी सड़कों पर बड़े बड़े गड्ढे ,
और कहीं मैनहोल का दक्कन नदारद ,
और यदि करे कोई शिकायत तो ,
यह मचाते है शोर ।
नगर पालिका है मगर कोई पालन नहीं करती ,
केंद्र प्रशासन के आदेशों का पालन नहीं करती ,
रिश्वत खोरी ,कामचोरी , बईमानी रग रग में बसी हुई ,
ऐसे में हम सुशासन की कल्पना नहीं की जा सकती ।
सुशासन की परिकल्पना नही किताबों के सिवा ,
कहीं ओर ।
निजी संस्थान ( शिक्षण संस्थान और अस्पताल )
गरीबों और मध्यम वर्गियों का खून चूसें ,
और सरकारी संस्थान काम करके खुश नहीं ।
ऐसे में क्या करे जनता,
प्रजातंत्र की अवधारणा का कोई अस्तित्व ना रह।
भ्रष्टाचार ,रिश्वरखोरी और कामचोरी ,
का यहां और न छोर ।
कैसे बनेगा देश खुशहाल यहां पर ,
कहां से आएगा चहुंमुखी विकास ।
जबतक सुशासन न आयेगा ,
मुश्किल है भविष्य में इनकी आस ।
कीजिए जनता और प्रशासन कुछ गौर ।